ठेठ मिजाज की सुरीली आवाज
मन
में लगन और लक्ष्य के प्रति
समर्पण देर-सवेर
ही सही इंसान को क ामयाबी जरूर
देता है.
और
तब जब वो विपरित परिस्थितियों
में हासिल की गयी हो वही क
ामयाबी मिसाल बन जाती है.
ईलता
का पर्याय बन चुके भोजपुरी
गीतों की मिठास और उसकी गरिमा
को पुन:
उसका
स्थान दिलाने की जद्दोजहद
करती पुरबिया तान की भोजपुरी
लोकगायिका चंदन तिवारी का
संघर्ष और मिसाल बनने की ओर
अग्रसर उनकी यात्र भी कुछ ऐसी
ही है.
समर्पण
ऐसा कि संगीत के अलावे कोई बात
मन-मस्तिष्क
में उतरती ही नहीं.
प्रभात
खबर से बातचीत में गीत-संगीत
को लेकर उनका यही जूनून शब्दों
की शक्ल में सुनने को मिला.
गीतों
में मिठास और बातों में सादगी
चंदन तिवारी की सबसे बड़ी
खासियत है.
‘सखिया
सावन बहुत सुहावन,
नदिया
धीरे बहो,
गंगाजी
से मटिया’
जैसे
उनके गाये 75
कर्णप्रिय
गीत इसकी ही बानगी हैं.
सोहर,
पूर्वी,
झूमर,
क
जरी,
बटोहिया
व बारहमासा जैसे विविधता भरे
गीतों से राष्ट्रीय स्तर पर
पहचान बना चुकी चंदन यंग जेनरेशन
के तौर पर भोजपुरी गीतों की
एकमात्र पैरोकार दिखती हैं.
मूलत:
भोजपूर
जिले की व बोकारों में पली-बढ़ी
चंदन से मिलने की इच्छा उनके
गीतों के जरिये ही जगी.
तकरीबन
घंटे भर की बातचीत और भोजपुरी
गीत-संगीत
के प्रति उनकी चिंता यकीनन
लोकगीतों के सूनहरे भविष्य
की आस जगा गयी.
-सबसे
पहले तो ये बताएं,
भोजपुरी
ही क्यों?
-
भोजपुरी
वासी और भोजपुरी निवासी होने
के नाते ये मेरा ये फ र्ज था
कि मै इस भाषा के उत्थान
के लिए कुछ करूं.
मै
किसी भाषा को बुरा नहीं कह
रही.
पर
मातृभाषा के लिए हमारी जिम्मेवारी
खुद ब खुद बढ़ जाती है.
गानों
में इस भाषा के गिरते स्तर से
मन में हमेशा एक कसक रहती
कि क्यूं न इसकी गरिमा बढ़ाने
की दिशा में कुछ करूं.
वहीं
से इसके प्रति लगाव जागृत
हुआ.
-भोजपुरी
गायकी चुनते वक्त कभी बाजार
का दबाव या ईल गानों के बढ़ते
प्रभाव से टकराहट
का डर नहीं लगा?
देखिये
डर जैसी तो कोई बात ही नहीं
थी.
मुङो
हमेशा से पता था बुराई की पकड़
चाहे जितनी मजबूत
हो अच्छाई अपना रास्ता तलाश
ही लेगी.
मेरा
काम था लोगों तक अच्छे गाने
पहुंचाना और
वो मै अब तक कर रही हूं.
आज
लोग मुङो पसंद कर रहे हैं,
मेरे
गाने उनके टेस्ट को बदल रहे
हैं,
और
मुङो क्या चाहिए.
यही
तो मेरा संघर्ष है.
और
सबसे बड़ी बात कि मै अपने गाने
बाजार में
नहीं बेचती.
आप
मेरे शोज के जरिये मुङो सूनते
हैं,
और
शोज से मिले पेमेंट से ही मै
अपने अगले
प्रोजेक्ट की तैयारी करती
हूं.
मेरे
गाने वेबसाइट्स (यू
ट्यूब,
पुरबिया
तान,
लोकराग
व साउंड
क्लाउड)
के
जरिये लोगों तक पहुंचते हैं
तो बाजार का डर कैसा?
झ्र बाजार
के दुस्प्रभाव का जिम्मेदार
किसे मानती हैं?
झ्र जिम्मेदारी
तो सबकी है.
पर
सबसे ज्यादा मै इसके लिए (माफ
क ीजिएगा)
श्रोताओं
को जिम्मेवार मानती हूं.
वो
ऐसे गाने सूनना बंद कर दें तो
ऐसे लोगों की दुकान अपने-आप
बंद हो जाएगी.
फिर
राइटर्स और सिंगर्स भी कसूरवार
हैं.
राइटर्स
और सिंगर्स ठान लें कि वो ईल
गानें ना लिखेंगे और ना गायेंगे
तो परेशानियां खूद ब खूद दूर
हो जाएंगी.
झ्र थोड़ा
पीछे चलते हैं,
बोकारो
की गलियों से भोजपुरी लोकगीतों
की उभरती पहचान बन रही चंदन
तिवारी की संक्षिप्त जर्नी
बताएं.
झ्र मां
(रेखा
तिवारी)
से
संगीत का ककहरा सीखा.
स्कूल
के क ार्यक्रम और मंदिर के भजन
क ीर्तन से सार्वजनिक मंच पर
गाने की शुरुआत की.
आगे
चलकर प्रयागराज संगीत समिति
इलाहाबाद से शास्त्रीय संगीत
की शिक्षा ली.
कुछ
समय बाद जब लोगों के क ानों तक
मेरे गाने पहुंचे तो सबने
ध्यान देना शुरू किया.
शुरू
में कुछ फिल्मी गाने गाये और
टीवी शोज(सुर
संग्राम,
जिला
टॉप)
भी
किया.
पर
जल्द ही ऐसे गानों से विरक्ति
हो गयी.
फिर
स्टेज के जरिये खुद के गानें
और भोजपुरी मिट्टी में गुम
हो चुके गीतों को सामने लाना
शुरू किया.
ऊपरवाले
का आशीर्वाद है कि गानें लोगों
के दिलों में उतर रहे हैं.
तब
से ये सफर जारी है.
झ्र इस
सफर की कुछ और उपलब्धियां शेयर
करें.
झ्र पुरबिया
तान को मै अपनी सबसे बड़ी
उपलब्धि मानती हूं.
महेन्द्र
मिसिर के कुछ गीत गाने के बाद
मैंने 16
मार्च
2014
को
पुरबिया तान की शुरुआत की.
रांची
स्थित अंचल शिशु आश्रम से
जुड़कर बच्चों के लिए गानें
गा रही हूं.
वैसे
गीतों को लय दे रही हूं जो हम
दादी-नानी
से किस्सों के रूप में सुनते
थे.
गंगा
बचाओ अभियान से जुड़कर गीतों
के माध्यम से गंगा की आह और
तड़प को जुबान दे रही हूं.
इन्हीं
क ार्यों के जरिये कई महोत्सवों
से आमंत्रण मिलता है.
भोपाल
के भोजपुरी अकादमी में तीन-चार
प्रस्तुतियां दे चुकी हूं.
झ्र पुरबिया
तान को जरा विस्तार से बताएं.
झ्र महेंदर
मिसिर को लोग पूर्वी का जन्मदाता
और पुरोधा मानते हैं.
पर
जहां तक मुङो समझ हैपहले जब
बिहार से लोग चटकल (क
ोलकाता)
जूट
मिल में काम करने जाते थे तो
यहां की स्त्रियां कुछ खास
तरह के लय में गाने गाती थी.
जिसे
तान कहते थे.
चुंकि
बंगाल बिहार के पुरब में था
इसलिए क ालांतर में इसे पुरबिया
तान का नाम मिला.
झ्र गायकी
की शुरुआत के वक्त की चंदन और
अब की चंदन तिवारी में कितना
अंतर पाती हैं?
झ्र (हंसती
हैं)
चंदन
तो वही है फर्क बस सोच और अनुभव
का आया है.
आज
मेरे पास बहुत सारे गाने हैं,
जो
मेरे गाये हुए खुद के गाने
हैं.
शुरुआत
में मै भोजपुरी फिल्मों,
गजल
और अलबम्स में किसी और के गाने
गाती थी.
आज
मै खुद के गाने गाती हूं.
भोजपुरी
परिवेश की गुम हो चुकी रचनाओं
और दादी-नानी
के गीतों की तलाश करती हूं और
उन्हें सुर के साथ साधकर उनसे
आज की पीढ़ी को रूबरू कराती
हूं.
झ्र गुम
हो चुकी स्मृतियों की बात चली
है तो भोजपुरी फिल्मी गीतों
पर उछलने वाले श्रोताओं को
उन स्मृतियों की ओर मोड़ना
क्या आसान होगा?
झ्र आसान
नहीं है,
पर
नामुमकीन भी नहीं है.
थोड़ा
वक्त दीजिए उन्हें पटरी पर
आने के लिए.
वो
आयेंगे और सूनेंगे,
और
ना केवल सूनेंगे बल्कि गायेंगे
भी.
और
जिस तरह के गाने मै गा रही हूं
मुङो विश्वास है वो वक्त भी
आएगा जब लोग ये कहेंगे कि अरे
भोजपुरी गाने इतनी मिठास लिए
भी हो सकते हैं.
झ्र भोजपुरी
गीतों में वेस्टर्न प्रयोग
कितना सही है?
झ्र प्रयोग
बूरी बात नहीं है.
अगर
गानों की मिठास और गीतों की
आत्मा बरकरार रहे तो नये प्रयोग
बेशक करने चाहिए.
यह
प्रयोग उन युवाओं के नजरिये
से भी जरूरी है जो रॉक और पॉप
की वजह से अपनी माटी के गीतों
से दूर जा रहे हैं.
आज
भी कई लोग ऐसे हैं जो मुझसे
कहते हैं कि भोजपुरी गाती हो,
अच्छा!
भोजपुरी
में सुनने लायक क्या होता है.
वैसे
परसेप्शन को बदलने के लिए भी
ऐसे प्रयोग जरूरी हैं.
झ्र सिंगिंग
के अलावे आप चंदन तिवारी को
किस रूप में देखती हैं?
झ्र सच
पुछिए तो गायकी से परे मै खुद
की कल्पना भी नहीं कर पाती.
पढ़ाई-लिखाई
में तो मै वैसे भी जीरो हूं(जोर
का ठहाका लगाती हैं),
सो
डॉक्टर-इंजीनियर
बनने का सवाल ही नहीं था.
हां
अगर सिंगर नहीं होती कहीं घर
के क ामों में बंधी होती या
थोड़ी-बहुत
पेंटिंग का शौक था उसे ही उभार
रही होती.
पर
इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं.
हमेशा
से सिंगिंग पर ही फ ोकस किया.
मेरा
मानना है कि दो नावों की सवारी
हमेशा डूबाती है,
तो
जो भी करो,
पूरी
एकाग्रता से करो.
झ्र लोकगायकी
से नयी प्रतिभाओं को जोड़ने
की दिशा में क्या सोच है आपकी?
झ्र रास्ता
थोड़ा क ठिन है.
क्योंकि
नये लोग इस दबाव को सहने से
कतराते हैं.
क
ामयाबी का शार्ट कट उन्हें
ज्यादा आसान लगता है.
मुझसे
आज भी कई लोग खास(अस्वीकार्य)
तरह
के गीत गाने की फरमाइश करते
हैं.
कई
अच्छे गानें वाले लोग आज भी
माहौल बदलने के इंतजार में
बैठे हैं.
मेरी
कोशिश यही है कि बेहतरी की
दिशा में मै अपने पीछे एक ऐसी
राह तैयार कर सकूं जिससे होकर
नयी प्रतिभाएं बिना संशय के
आगे आयें.
और
जिस दिन मै ऐसा कर पाने में
सफल हो पायी,
खुद
को धन्य समझूंगी.
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