Saturday, December 10, 2016

फिल्म समीक्षा

            बेफिक्रे के जरिये ब्यूटी से बोल्डनेस की ओर यशराज

यशराज के फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत भारतीय परंपरा और पारिवारिक मुल्यों के ताने-बाने से बूनी फिल्में रहीं हैं. दिवंगत यश चोपड़ा की फिल्म जब तक है जान के जरिये वो बूनावट थोड़ी दरकी थी. इस बार आदित्य चोपड़ा ने बेफिक्रे के साथ उस आवरण को उतार फेंका है जो कभी यशराज की पहचान हुआ करता था. तर्क यूवा व उनके टेस्ट या बदलते कल्चर का ख्याल रखने की हो सकती है. पर पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने की चाहत वाले दर्शक वर्ग के लिए यशराज की ये सौगात थोड़ी अकुलाहट दे सकती है. बहरहाल बात सिनेमा की करें तो बेफिक्रे रणवीर सिंह की एक और छलांग है. बाजीराव तक के सफर को वो बेफिक्रे से एक कदम और आगे ले जाते हैं. कहानी में नयापन न होने के बावजूद मेट्रो कल्चर के साथ आदित्य का ये ट्रीटमेंट यूथ्स को तो जरूर आकर्षित करेगा.
ब्रेकअप के बाद धरम(रणवीर सिंह) और शायरा (वाणी कपुर) एक-दूसरे से कतराते हैं. अपनापन बरकरार है पर बीच में एक अजनबीपन की दीवार उठ चुकी है. क ारण तलाशते दर्शक एक गाने के जरिये फ्लैशबैक में जाते हैं. दिल्ली का धरम एडवेंचर की तलाश में पेरिस पहुंचता है. मुलाकात शायरा गिल से होती है. पहली मुलाकात में एडवेंचर की चाहत में कई अजीबोगरीब डेयर एक दूसरे को देते हुए साथ होते हुए भी प्यार में न पड़ने की बात तय करते हैं. क्रेजीनेस का ये सफर अपने शुरुआत में ही किस से होता हुआ बिस्तर तक जा पहुंचता है. शायरा के लिए यह यूज टू है पर धरम को इसमें नया एक्साइटमेंट दिखता है. नतीजतन दोनों लिव इन में रहने का फैसला लेते हैं. पर आम जोड़ों की तरह दोनों कुछ ही वक्त में इस रिश्ते से बोर हो जाते हैं, और ब्रेकअप कर लेते है. पर ब्रेकअप के बाद भी दोस्ती बरकरार रहती है. लाइफ में कुलबुलाहट तक आती है जब सिंगल जीवन जीने की कोशिश में दोनों को एक -दूसरे की अहमियत का अंदाजा होता है. पतझड़ के पत्तियों की माफिक झड़ चुकी भावनाओं की जगह अहसास के नए क ोंपल उगते हैं. करीब होने की चाहत हिलोर लेती हैं.
बेफिक्रे की कहानी में कुछ भी अलहदा नहीं है. बावजूद इसके ट्रीटमेंट की वजह से फिल्म देखने लायक बन जाती है. गीत-संगीत के अलावे आदित्य के इस विजन को अगर किसी का भरपूर साथ मिला है तो वो हैं रणवीर सिंह. उन्हें देखते हुए भले आपको बैंड बाजा बारात के बिट्टू शर्मा का अहसास हो, पर फिल्म में यूज्ड एनर्जी और ताजगी के जरिये रणवीर फिर ये जता जाते हैं कि क्यों वो समकालीन अभिनेताओं में श्रेष्ठ हैं. हां वाणी को देख थोड़ी चूक का अहसास होता है. पेरिस के नयनाभिराम लोकेशंस और विशाल-शेखर के कर्णप्रिय संगीत से सजी फिल्म आकर्षित तो करती है पर फिल्म में इस्तेमाल बेशुमार किसींग सींस और रणवीर का बैक न्यूड सीन कहीं न कहीं फिल्म को फैमिली इंज्वायमेंट के दायरे से दूर करता है.
क्यों देखें- आदित्य, रणवीर के फैन हों और एक मौका बनता है.
क्यों न देखें- यशराज की छवि के अनुरूप फिल्म देखने की चाहत लिए बैठे हों तो.



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