खुशनुमा
सफर पर ले जाती है करीब करीब
सिंगल
पिछले
कुछ महीनों से अपने टायटल,
ट्रेलर
और ट्रेलर में दिख रही इरफान-पार्वती
की केमिस्ट्री की वजह से फिल्म
दर्शकों के बीच काफी उत्सुकता
जगा चुकी थी.
और
लंबे गैप के बाद तनुजा चंद्रा
की निर्देशन में वापसी से यह
उत्सुकता चरम पर थी.
यकीनन
फिल्म ने उस उत्सुकता की क्षुधा
को बड़ी तृप्तता देकर शांत
किया.
करीब-करीब
सिंगल देखे जाने लायक फिल्म
केवल इसलिए नहीं है क्योंकि
यह तनुजा चंद्रा की फिल्म है,
बल्कि
यह इसलिए भी देखे जाने लायक
है कि एक स्वीट एंड सिंपल कहानी
का इतना अच्छा ट्रीटमेंट भी
हो सकता है,
इसलिए
भी कि इरफान जैसा संजीदा एक्टर
रोमांस के जोनर में भी इस कदर
लुभा सकता है और इसलिए भी कि
हिंदी से अनजान साउथ की एक क
ामयाब एक्ट्रेस बिना चेहरे
पर मेहनत की शिकन लाये कैसे
हिंदी सिनेमा के फ्रेम में
भी करीने से फिट बैठ सकती है.
यकीनन
फिल्म तनुजा की पिछली फिल्मों
दुश्मन और संघर्ष के लेबल तक
नहीं पहुंच पाती पर अलग जोनर
की हल्की-फुल्की
फिल्म होते हुए भी अपने ट्रीटमेंट
की वजह से लुभाती है.
थर्टीज
की उम्र में ही विधवा हो चुकी
जया (पार्वती)
अपनी
जिंदगी को नये सिरे से शुरू
करना चाहती है.
मेंटल
लेवल पर मैच्योर हो चुकी जया
खुद के जैसे सोच वाले साथी की
तलाश में है.
और
इसके लिए वो सहारा लेती है
वेबसाइट का.
वेबसाइट
पर वो अपना प्रोफाइल डालती
है.
और
इसी क्रम में उसका संपर्क होता
है योगी(इरफान
खान)
से.
योगी
एक क वि मिजाज है जो क विताओं
के जरिये अपनी पहचान तलाशने
की कोशिश में है.
पर
उसकी एक भी किताब अबतक नहीं
बिक पायी है.
जया
योगी के प्रोफाइल से अट्रेक्ट
होती है और उससे मिलने का फैसला
करती है.
दोनों
की मुलाकात पर योगी का बेबाकीपन
उसे आश्चर्य में डाल देता है.
जया
से कुछ मुलाकात में ही योगी
उसे अपनी पिछली तीन गर्लफ्रेंड्स
के बारे में बताता है जिनकी
अब शादी हो चुकी है.
योगी
जया को खुद के बारे में जानने
के लिए उसकी गर्लफ्रेंड्स से
मिलने के लिए कहता है.
फिर
शुरू होती है दोनों की एक जर्नी
जो ऋषिकेश,
अलवर
और गंगटोक होते हुए प्यार के
एक नये सफर पर चल पड़ती है.
बेशक
फिल्म अपनी धीमी रफ्तार से
आपके धैर्य का इम्तिहान भी
लेती है,
पर
इरफान और पार्वती की केमिस्ट्री
और किरदारों के जरिये उनका
मोहता खिलंदड़पन आपको उस कमी
से उबार भी लेता है.
इरफान
को इस तरह के रोमांस से लबरेज
अवतार में देखना अपने आप में
एक अलग सुखद अहसास देता है.
दूसरी
ओर साउथ से हिंदी फिल्मों का
रूख करती पार्वती अपने किरदार
के साथ इस कदर सहज लगती है कि
ये भान भी नहीं होता कि वो किसी
और भाषी क्षेत्र से है.
सहयोगी
भुमिकाओं में नेहा धुपिया और
ईशा श्रवणी भी सराहनीय हैं.
बृजेन्द्र
क ाला का स्पेशल अपीयरेंस
मजेदार है.
फिल्म
ट्रैवल सींस के दौरान का
फिल्मांकन भी फिल्म को मजबूती
के साथ उभारता है.
क्यों
देखें-
अगर
आप इरफान फिल्मों के फैन हैं
और स्वीट एंड सिंपल कहानी की
चाहत रखते हों.
क्यों
न देखें-
तनुजा
की पिछली फिल्मों से तुलना
करेंगे तो निराशा होगी.
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