Saturday, November 11, 2017

फिल्म समीक्षा

शादी में जरूर आना

राजकुमार राव इस साल हिंदी फिल्मउद्योग की सबसे बड़ी उपलब्धि रहे रहे हैं. ट्रैप्ड, राब्ता, बरेली की बरफी और न्यूटन जैसी फिल्मों से हरदिल अजीज बन चुके राव इस फिल्म में भी पूरी रौ में नजर आते हैं. न्यूटन तो हालांकि ऑस्कर के लिए नॉमिनेट भी हो चुकी है. बहरहाल शादी में जरूर आना को अगर सबसे ज्यादा किसी के क ांधे का सहारा मिला है तो वो हैं राजकुमार राव. कहानी और ट्रीटमेंट के लिहाज से फिल्म शुरूआत में तो काफी उम्मीद जगाती है पर अंजाम तक आते-आते धराशायी हो जाती है. क ानपुर के गंवई परिवेश से शुरू हुआ सफर आखिर में बंबईया मसाला फिल्मों वाले क्लाइमैक्स की भेंट चढ़ जाता है.
कहानी क ानपुर में रहने वाले सत्तु उर्फ सतेन्द्र (राजकुमार राव) और आरती शुक्ला (कृति खरबंदा) की है. दोनों के अरेंज मैरेज की तैयारी चल रही है. आरती एक महत्वकांक्षी लड़की है. पर फैमिली वालों की खूशी के लिए वो शादी के लिए राजी हो जाती है. शादी से पहले दोनों को एक दूसरे से मिलवाया जाता हैं. बुङो मन से दोनों एक-दूसरे से मिलने को तैयार होते हैं पर मिलते ही पहली नजर में ही एक-दूसरे को पसंद भी कर लेते हैं. शादी की तैयारी शुरू हो जाती है, पर ऐन शादी के दिन आरती घर छोड़कर भाग जाती है. जिससे सत्तु के फैमिली की काफी फ जीहत होती है. कहानी यहां से पांच साल आगे जाती है. सत्तु आईएएस ऑफिसर बन जाता है और आरती वहीं पीसीएस अफसर बनकर आती है. आरती से नफरत की आग में जल रहा सत्तु उसे विभाग के एक भ्रष्टाचार के आरोप में फंसाने की चाल चलता है.
कहानी अपने फस्र्ट हाफ में जितनी सशक्त और आकर्षक लगती है सेकेंड हाफ में आते-आते धोखे और बदले के मैलोड्रामा में बदल जाती है. ट्विस्ट और टर्न बनावटी अहसास देते हैं. और क्लाइमैक्स तक आते-आते मसाला फिल्मों वाले झोल का शिकार हो जाती है. बावजूद इसके राजकुमार राव अपनी पूरी रौ में दिखते हैं. अभिनय की संजीदगी से बखूबी अहसास दिला जाते हैं कि ऐसी भुमिकाओं के लिए वो कितने परिपक्व हो चुके हैं. कृति खरबंदा की स्क्रीन प्रेजेंस भी मोहती है. किरदार की जरूरतों को उन्होंने बखूबी समझा है. सहयोगी भुमिकाओं में अलका अमीन, गोविंद नामदेव और नवनी परिहार भी जंचती हैं. कुल मिलाकर अगर आप राजकुमार राव के फैन हों तो एक बार थियेटर का रुख बुरा नहीं रहेगा.



No comments: