फिल्म
समीक्षा
तर्को
को किनारे रख दें,
और
दो घंटे बस हिंदी सिनेमा के
प्रचलित मसालेदार फ ामरूले
का लुत्फ लें.
तर्को
में दिमाग लगाएंगे तो खींज
होगी.
और
अगर आप जॉन और वरूण के दीवाने
हैं,
फिर
तो तर्को के साथ-साथ
कहानी को भी दरकिनार कर दें,
मनोरंजन
का जायका ज्यों का त्यों रहेगा.
लब्बोलुआब
ये कि आयडिये के स्तर पर काफी
मजबूत दिखती फिल्म परदे पर
आते-आते
बस जॉन और वरूण की प्रदर्शनी
बन कर रह जाती है.
जैकलीन
फर्नाडिस का उपयोग भी बस इस
शो में ग्लैमर का तड़का लगाने
भर को ही हुआ है.
देसी
ब्वायज जैसी खालिस मसालेदार
फिल्म बनाने के बाद रोहित धवन
एक बार फिर उस र्ढे का मोह नहीं
त्याग पाये और ढिशुम के जरीये
वो खुद को मसाला फिल्मों की
एक सीमा में बांधते ही नजर आते
हैं.
कहानी
शुरू होती है इंडिया-श्रीलंका
के बीच हुए क्रिकेट मैच के बाद
से.
उस
मैच के बाद टीम इंडिया के स्टार
बल्लेबाज विराज शर्मा (शाकिब
सलीम)
का
अपहरण हो जाता है.
ताकि
वो शारजाह फाइनल में होने वाले
भारत-पाकिस्तान
के मैच का हिस्सा न बन सके.
विराज
का पता लगाने के लिए भारतीय
विदेश मंत्रलय द्वारा ऑफिसर
कबीर शेरगिल(जॉन
अब्राहम)
को
भेजा जाता है.
वहां
वो जुनैद अंसारी (वरूण
धवन)
के
साथ मिलकर विराज की तलाश करता
है.
दानों
के पास 36
घंटे
का वक्त है विराज को वापस लाने
के लिए.
विराज
की तलाश करते कबीर और जुनैद
का सामना सैम(अक्षय
कुमार),
मीरा(जैकलीन
फर्नाडिस)
और
बाघा(अक्षय
खन्ना)
से
होता है.
बाघा
क्रिकेट सट्टेबाजी की दुनिया
का किंग है.
विराज
की वजह से उसके तीन सौ करोड़
डूब चुके हैं.
वो
विराज के जरीये अपने डूबे पैसे
पाने की कोशिश करता है.
और
फिर चलता है पैसों की मांग
करते बाघा और विराज की खोज में
लगे ऑफिसर के बीच चुहे-बिल्ली
का खेल.
36 घंटे
के इस चुहे-बिल्ली
के खेल में आपको कॉमेडी,
ग्लैमर
के साथ-साथ
एक्शन का भरपूर डोज मिलता है.
परदे
पर जॉन और वरूण के हर इंट्री
के साथ थियेटर में रूक-रूककर
बजती सीटियों और तालियों की
गड़गड़ाहट से ये अहसास हो जाता
है कि दर्शकों को कहानी की
मजबूती से ज्यादा जॉन और वरूण
के सिक्सपैक्स व डोलों की
मजबूती की चाहत है.
किरदार
अदायगी के मामले में वरूण जॉन
को पीछे छोड़ जाते हैं.
हंसोड़
किस्म के ऑफिसर की भुमिका में
वरूण की कॉमिक टाइमिंग और वन
लाइनर संवाद मजेदार हैं.
जॉन
भी सीरियस किरदारों में फबते
हैं.
पर
ऐसे किरदारों में अब उनकी
एकरूपता नजर आती है.
काफी
वक्त बाद परदे पर दिखे अक्षय
खन्ना और विराज के किरदार में
शाकिब सलीम प्रभावित करते
हैं.
पर
फिल्म की जान सैम के कैमियो
किरदार में अक्षय कुमार और फ
ोन के जरीये बीच-बीच
में हंसी का तड़का लगाने वाले
सतीश क ौशिक रहे.
बगैर
परदे पर दिखे सतीश केवल आवाज
के जरीये अपनी दमदार उपस्थिति
दर्ज करा जाते हैं.
सौ
तरह के रोग गाने को सूनना भी
कर्णप्रिय लगता है.
क्यों
देखें-
जॉन
व वरूण के दीवाने हैं तो फिल्म
बस आप ही के लिए है.
क्यों
न देखें-
कहानी
में तर्को की माथापच्ची से
दिमाग भन्ना सकता है.
No comments:
Post a Comment