Sunday, July 31, 2016

क ॉमन मैन के जरीये सिस्टम खंगालता है मदारी

फिल्म समीक्षा
पिछले कुछ दिनों से फिल्म के प्रोमो का टैगलाइन श्श्श्श्श् देश सो रहा है आम से खास तक के अंदर उथल-पूथल मचा रहा था. कईयों की भौंहें तन रही थी तो कई निगाहें कुछ खास की उम्मीद में टकटकी लगाये थी. बात पॉलिटिकल गलियारे और सिस्टम पर सवाल उठाती फिल्म मदारी की थी. और यकीनन निर्देशक निशिकांत क ामत की मदारी उन उम्मीदों को निराश नहीं करती. पॉलिटिक्स और सिस्टम में बैठे लोग भी शायद मदारी की इस साफगोई से इत्तेफाक रखें कि आज हर दिन किसी न किसी आम आदमी की जिंदगी में सिस्टम ओरियेंटेड हादसे की वजह से उथल-पूथल मचता है. और आम जिंदगी के ये हादसे खबरों और अखबारों की दुनिया के किसी कोने में दफन हो जाते हैं. पर वही हादसा जब किसी खास की जिंदगी में दखल देता है तो पूरे सिस्टम और पॉलिटिक्स में भूचाल आ जाता है. फिल्म इसी आम और खास के अंतर की जवाबदेही मांगती है. जनता के वोटों के भरोसे सत्ता पर काबिज लोग जब खुद की इमारतें मजबूत करने में लग जाएं तो जनता के प्रति कौन जवाबदेह होगा. दूसरी ओर सिस्टम के मकड़जाल में उलझा आम आदमी भी इसे नियति मानकर खामोशी की चादर ओढ़ लेता है. पर हां, मदारी केवल सोये देश का अक्स भर नहीं दिखाती, भविष्य की उम्मीदें भी दिखाती है. आम आदमी निर्मल की भुमिका में इरफान का संवाद कि आज नहीं, कल नहीं, शायद दस-पंद्रह साल बाद लोग समङोंगे इसी खुशनूमा भविष्य की ओर इशारा करता है.
फिल्म की कहानी अपनी छोटी सी दुनिया मस्त रहने वाले एक आम आदमी निर्मल(इरफान) की है. उसकी दुनिया में वो और उसका सात साल का बेटा अप्पू है. हंसती-खेलती दुनिया में अचानक एक हादसा होता है. अप्पू एक पूल हादसे का शिकार हो जाता है. हादसे में सरकारी जिम्मेदारी की वजह से बात दब कर रह जाती है. निर्मल उन्हीं गुनहगारों को सजा दिलवाने की खातिर होम मिनिस्टर के बेटे को किडनैप कर लेता है. हाई प्रोफाइल मामले की वजह से पूरा सिस्टम और पॉलिटिकल गलियारा हरकत में आ जाता है. और तब निर्मल रिहाई के बदले उस पूल हादसे के गुनहगारों को सजा की मांग करता है. कहानी सिंपल है, पर आम इनसान के भीतर दबे -सोये गुस्से को कुरेदती है. मजबूर करती है केवल वोट देकर अपनी जिम्मेदारी खत्म समझने की सोच से आगे जाकर इन राजनीतिक रहनुमाओं से अपने-अपने हिस्से का जवाब मांगने की.
फिल्म अपने धीमी गति की वजह से बीच-बीच में खींज देती है. पर इस खींज से आपको खींच लाने की पूरी जिम्मेदारी इरफान पर थी. और यकीनन इरफान अपने संजीदा अभिनय से उस जिम्मेदारी को बखूबी उठा ले जाते हैं. इरफान के रूदन का हर पल आम आदमी की बेबसी और कमजोर पलों के रूदन का अहसास देता है. और सबसे बेहतर फिल्म का क्लाइमैक्स, जो आपपर कोई निर्णय थोपने के बजाय दो-दो अंत के साथ आपको पूरी आजादी देता है. खुद का अंत चुनने की.
क्यों देखें- भ्रष्ट सिस्टम और आम आदमी के बीच की रस्साकसी व इरफान की खूबसूरत अदाकारी देखनी हो तो.

क्यों न देखें- हिंदी मसाला सिनेमा के शौकीन हैं तो बेहतर होगा कोई और ऑप्शन तलाशें.

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