लव और लाइफ के बीच झुलती मेरी प्यारी बिंदू
निर्देशक
अक्षय रॉय की फिल्म मेरी प्यारी
बिंदू की अहमियत कई मायनों
में इससे जुड़े लोगों के लिए
खास है.
एक
ओर जहां यह अक्षय की पहली फिल्म
है वहीं मुख्य कलाकार आयुष्मान
खुराना और परिणिती चोपड़ा के
लिए इस वजह से कि उन्हें अरसे
से एक हिट की तलाश है.
आयुष्मान
की पिछली हिट यशराज के बैनर
तले ही दम लगा के हइसा रही थी.
छोटे
बजट की मेरी प्यारी बिंदू इस
लिहाज से कुछ हद तक खरी उतरती
है.
अस्सी-नब्बे
के दशक का कलकत्ता,
आरडी
बर्मन का संगीत,
लता-आशा-किशोर-रफी
का संगीत और बचपन के परिवेश
की कुछ खट्टी-मीठी
यादें ही फिल्म को खास बनाती
है.
बावजुद
इसके प्रेम कहानी के स्तर पर
प्रेम की क शिश में दर्शकों
को बांध सकने में अक्षय की
कोशिश चूक सी गयी है.
मुंबई
में रहने वाला अभिमन्यु(आयुष्मान
खुराना)
एक
क ामयाब नॉवेलिस्ट है.
पर
पिछले कुछ सालों से उसकी कोई
नॉवेल पाठकों और पब्लिशर्स
को आकर्षित करने में क ामयाब
नहीं हो पायी थी.
और
जैसा कि अमुमन होता है अच्छी
रचना की तलाश लेखक को उसके
बचपन में लौटा ले जाता है,
अभिमन्यु
भी इसी कोशिश में क ोलकाता
लौटता है.
और
उसके साथ उसकी कहानी फ्लैशबैक
के जरिये बचपन में जाती है.
जहां
उसके पड़ोस में रहने वाली
नन्हीं बिंदू थी और साथ थे
समोसे-चटनी
और रोमांटिक गानों के साथ उन
दोनों के बीच पनपी दोस्ती.
वक्त
के साथ यह दोस्ती अभिमन्यु
के एकतरफा प्यार में तब्दील
हो जाता है.
बिंदू
एक क ामयाब सिंगर बनना चाहती
थी.
घटनायें
कुछ ऐसा मोड़ लेती हैं कि बिंदू
अपना घर छोड़ कर भाग जाती है.
अकेलेपन
से जुझता अभिमन्यु आगे की
पढ़ाई के लिए साऊथ चला जाता
है.
दूसरी
ओर बिंदू भी देश-विदेश
भटकती गोवा पहुंच जाती है जहां
उसकी मुलाकात वापस अभिमन्यु
से होती है.
अब
दोनों एक-दूसरे
के सामने होते हैं और साथ में
होती है दोनों की महत्वकांक्षाएं.
बिंदू
को सिंगिंग प्लेटफार्म की
तलाश है वहीं अभिमन्यू की चाहत
राइटर बनने की है.
दोनों
के बीच की बांडिंग और उनकी
महत्वकांक्षाए उन्हें किस
अंजाम तक ले जाती हैं इसका
मुजायरा आप थियेटर में करें
तो ही बेहतर होगा.
फिल्म
की कहानी भले क ागज पर आपको
आकर्षित करती नजर आये पर थियेटर
में प्यार और दोस्ती के घालमेल
के बीच झुलती यह फिल्म कई जगहों
पर उबाती भी है.
प्यार
को क ायदे से अमली जामा पहनाने
में अक्षय भटके से नजर आते
हैं.
फिरभी
अस्सी-नब्बे
के दशक की फील से सजी फिल्म
आपको स्कूल-कॉलेज
के दिनों के कई खूशनुमा पलों
की याद दिला देगा.
बेहतरीन
लोकेशंस और कैमरावर्क से सजी
फिल्म आयुष्मान और परिणिती
की केमिस्ट्री के लिए भी देखे
जाने लायक है.
आयुष्मान
फिल्म दर फिल्म अपनी रेंज में
इजाफा करते जा रहे हैं.
दम
लगा के हइशा के बाद यहां भी
उनकी अदायगी सराहनीय है.
परिणिती
थोड़ी चौंकाती जरूर हैं पर
अभी उन्हें रेस में आगे जाने
के लिए क ाफी लंबा सफर तय करना
पड़ेगा.
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