Saturday, May 6, 2017

                 अपनी नजरों में खूद को साबित करना है

बिहार के डूमरांव का एक लड़का हायर एजूकेशन के लिए जयपुर जाता है. मेहनत के बलबूते बंगलुरू में इंजीनियर बन जाता है. पर मन के अंदर माटी से जूड़ने की ललक ऐसी कि प्रतिष्ठा भरी नौकरी ठुकराकर सिनेमा की दुनिया में खूद को साबित करने निकल पड़ता है. माटी की सोंधी खुशबू लिए शार्ट फिल्म ललका गुलाब बनाता है और देखते-देखते भोजपुरी उत्थान के लिए संघर्षरत्त लोगों का अगुआ बन जाता है. कुछ ऐसी ही फिल्मी स्क्रिप्टनुमा कहानी है अमित मिश्र की.
आज जहां भोजपुरी सिनेमा दिन ब दिन अपनी साख खोता जा रहा है वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उस गरिमा को बचाने की जद्दोजहद में खुद को झोंक रहे हैं. ऐसा ही एक नाम है अमित मिश्र का. इंजीनियरिंग की प्रतिष्ठित नौकरी को धत्ता बताते हुए अमित ने भोजपुरी सिनेमा को उसकी असली पहचान दिलाने का जो बीड़ा उठाया है, फिल्म ललका गुलाब उसकी शुरुआत भर है. और उम्मीद व हौंसले से लबरेज उनकी आंखों की चमक इस बात का इशारा है कि भोजपुरी सिनेमा का कल निश्चित ही गरिमामयी व सूनहरा होने वाला है. प्रभात खबर के गौरव से बातचीत में अमित ने इसी सूनहरे भविष्य को ले अपना यकीन शब्दों की शक्ल मे साझा किया.

- इंजीनियरिंग का लड़का बीईएल (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ अनिश्चितताओं भरी दुनिया में संभावना तलाशता है. क्या वजह रही इस उलट-फेर की?
- शुरू में मुङो भी थोड़ा डर लगा. पर घर में सबसे छोटा होने की वजह से मुङो हमेशा घरवालों का सपोर्ट मिला. यूं कह लीजिए बचपन से छोटे होने का भरपूर फ ायदा उठाया. फिल्मों में जाने का डिसीजन लेते वक्त भी जब घरवालों का पूरा सहयोग मिला तो वो डर बिलकुल खत्म हो गया. संघर्ष की संभावना थोड़ी कम हुई. जहां तक उलट-फेर के वजह की बात करूं तो बिहारी शब्द ने मुङो इस फ ील्ड मे ला दिया. घर से पढ़ाई के लिए बाहर निकलने से लेकर नौकरी करते वक्त तक ये शब्द मैं लोगों के जुबान से गाली के रूप मे सुनता रहा. बचपन से बिहारी शब्द सुनकर जिस गर्व का भान होता था बाहर निकलते वो गर्व चकनाचुर हो गया. हर पल मुङो लगता क्या करूं कि बाहर भी बिहारी शब्द को ले वहीं गरिमा बनी रहे. मन में हमेशा एक उथल-पुथल रहता था. उस धारणा को तोड़ने के ख्याल ने मुङो इस फ ील्ड में खींच लिया. आगे चलकर जब आखर के संपर्क में आया तो लगा कि भोजपुरी सिनेमा के जरिये कुछ ऐसा करना है जिससे बाहरी लोगों के मन में इस शब्द के लिए सम्मान जगा सकूं.
- फिर शुरुआत कैसे हुई?
- फैमिली के परमिशन से जॉब छोड़ने के बाद ख्याल आया कि अगर मैं फिर से फिल्म की पढ़ाई शुरू करूं तो काफी लंबा वक्त लगेगा. क्योंकि इंजीनियरिंग में मैं चार साल खपा चुका था. तब सोचा क्यूं ना मैं काम करके ही सीखूं. फिर मैंने प्रेक्टिकल नॉलेज के लिए काफी काम किया. तीन साल तक शार्ट फिल्म्स, फ ीचर और ड ाक्यूमेंट्रिज, ऐड फिल्म्स व क ॉरपोरेट विडियोज के लिए काम किया. सिनेमा के हर विभाग के हर पहलू का बारीकी से अध्ययन किया. तब जाकर मैंने जनवरी 2016 में खुद की एक शार्ट फिल्म बनायी अंडर द रॉक. उस फिल्म को देखने के बाद अश्विनी रूद्र ने मुङो क ॉल किया और पांच पन्ने की अपनी एक कहानी पर फिल्म बनाने को कहा. फ ाइनेंस भी वो खुद ही कर रहे थे. यहीं से ललका गुलाब की शुरुआत हुई.
- क्या है ललका गुलाब?
- अश्विनी रुद्र की ये कहानी हम सब को वापस अपने फैमिली वैल्यूज के इर्द-गिर्द ले जाती है. डेवलमेंट के चक्कर में हम अपनी जिन जड़ों से मुंह मोड़ आए थे ये उसी की कहानी है. बिहार से बाहर केवल देश ही नहीं विदेशों में रहने वाले बिहारी भी इस फिल्म को देखकर उससे खुद को कनेक्ट कर रहे हैं. फिल्म देखकर अमेरिका और कई जगहों से आए मैसेजेज इस बात के प्रमाण हैं.
- आपने आखर की बात की. इसके बारे में कुछ बताएं ?
- आखर का मुख्य उदेश्य है भोजपुरी साहित्य और इसकी विरासत को लोगों तक पहुंचाना. एगो डेग भोजपुरी साहित्य खातिरइस उदेश्य के साथ आखर हर उस शख्स को अपना कंधा देता है जो भोजपुरी के विकास के लिए किसी तरह के अच्छे क ामों के जरिये प्रय}शील हैं. यह मैगजीन और फेसबुक पेज के जरिये देश-विदेश में लोगों तक भोजपुरी साहित्य को पहुंचाता है. आज के समय में आखर के सिवा शायद ऐसा कोई प्लेटफार्म नहीं है जो भोजपुरी के उत्थान के लिए इस स्तर पर प्रयासरत है. आज आखर के संपर्क का ही परिणाम है कि मैं भोजपुरी को ले इतना आशान्वित हूं.
- आज जब भोजपुरी सिनेमा बाजार और ईलता का पर्याय बन चुका है, ऐसे में धारा के विपरीत चलते हुए आप कितने आशान्वित हैं?
- सच कहा आपने कि भोजपुरी सिनेमा का मतलब आजकल ईलता के अलावा कुछ नहीं रह गया है. कहानी और गानों का स्तर इतना गिर चुका है कि सुधी दर्शक खासकर महिलाएं अब भोजपुरी सिनेमा की बात ही भूल चुकी हैं. ऐसे में मेरा रास्ता थोड़ा मुश्किल जरूर है पर असंभव तो बिलकुल नहीं. इसीलिए मैं पहले शार्ट फिल्म्स के जरिये दर्शकों के मन में भोजपुरी की वो धारणा तोड़ने की कोशिश में हूं कि यहां अच्छी फिल्में नहीं बनती. मैं फिर से वो ऑडियंस क्रियेट कर रहा हूं जो इस दुनिया से किनारा कर चुकी है. धीरे-धीरे ही सही पर एक बार जब मैं लोगों के मन में यह बात बैठा दूं कि भोजपुरी अपनी गरिमा के रास्ते लौट चुकी है फिर मैं थियेटर के लिए फिल्में बनाने की शुरुआत करूंगा. तब सही वक्त होगा जब मैं अच्छी फिल्में बनाकर निर्माताओं को उनका पैसा वसूल करवा सकूंगा. पर थोड़ी मदद तो सरकार, दर्शक और मीडिया से भी चाहिए ताकि भोजपुरी सिनेमा के अच्छे दिन जल्द आ सकें.
- पहली बार सिनेमा का आकर्षण कब महसूस किया?
- 2010 की बात है, तब मैं थर्ड इयर का स्टूडेंट था. क ॉलेज के कल्चरल इवेंट्स और स्टेज परफार्म में पार्ट लेता था. गाने-वाने भी ठीक-ठाक गा लेता था. यहीं से सिनेमा के आकर्षण का वो बीज पनपा. फिर कुछ दिनों में लगा गाने के बजाय कहानी लिखकर उन्हें स्टेज प्ले के जरिये लोगों तक ले जाने में मुङो कुछ करना चाहिए. पर पढ़ाई खत्म होते ही नौकरी की आपाधापी में वो इच्छा दबकर रह गयी. लेकिन कहते हैं ना, होता वही है जो नियति में हो. दस से चार की नौकरी ने कुछ ही दिन में बोर कर दिया. अंदर का कलाकार रह-रह कर हिलोर मारने लगा. और कुछ ही वक्त में मन के विद्रोह ने सिनेमा के फील्ड में ला पटका. अब समस्या यह थी कि यहां मुङो लोगों के सामने नहीं खुद को खुद के सामने प्रूव करना था. क्योंकि मैं अपनी मर्जी से गवर्नमेंट जॉब (आकाश मिसाइल बनाने वाली टीम के जुनियर इंजीनियर) छोड़कर आया था. तो मुङो खुद को ही प्रूव करना था कि मेरा डिसीजन गलत नहीं है. और यही बात मेरे मोटिवेशन का सबसे बड़ा क ारण बनी.
- इस फील्ड में और भी अमित मिश्र जैसी प्रतिभाओं को सही मंच मिले इसके लिए कोई प्लानिंग है मन में?
- देखिए अभी मेरे पास छ: ऐसी कहानियां हैं जिनपर मैं फिल्म बनाने वाला हूं. मैं तो चाहूंगा कि नयी प्रतिभाएं मेरे साथ जुड़ें. अगर मैं साल में दो फिल्में बनाता हूं और दस लोग भी मुझसे जूड़ते हैं तो हम मिलकर साल में कम से कम पंद्रह से बीस फिल्में बना सकते हैं. तब सुधार की गति दस गूनी बढ़ जाएगी. और हम जल्द ही भोजपूरी को उसकी असली पहचान दिला पाएंगे. जहां तक सहयोग की बात है तो हर वक्त मेरी मौजूदगी नयी प्रतिभाओं के लिए खूली है. आप आएं और एक साथ एक सोच से एक दिशा में काम करें.
- युवा प्रतिभाओं के लिए कोई मंत्र?
- देखिए अगर इस फ ील्ड में केवल पैसा कमाना आपका ध्येय है तो फिर आप बाकी लोगों के जैसे अपनी मरजी का कुछ भी बनाएं. लेकिन अगर सच्चे मन से पॉजिटिव सफलता चाहते हैं तो एक ही मुलमंत्र याद रखें भोजपुरी. इसकी गरिमा, संस्कृति और उत्थान के लिए मेहनत करते रहें और यकीन मानिए आपकी वो मेहनत आपको एक दिन काफी ऊंचाई तक ले जाएगी.


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