इतिहास
की अपुष्ट जानकारियों के आधार
पर मोहेंजो दारो के 4032
वर्ष
पुराने नगर की रचना आसान नहीं
था.
पर
चुंकि साक्ष्य का अभाव आपको
काल्पनिक छूट लेने की इजाजत
दे देता है,
तो
इसी को आधार बनाकर आशुतोष
गोवारिकर ने उस काल के मोहेंजो
दारो का ऐसा स्वरूप रचा जो आगे
शायद यही छवि हमारे जेहन में
जिंदा रखेगा.
फिल्म
कल्पना के आधार पर मोहेंजो
दारो सभ्यता की जीवनशैली और
उसके अंत की कहानी कहती है.
पर
ये आपके उस जिज्ञासा को पूरी
तरह शांत करने में शायद ही
कामयाब हो पाए जो पढ़ाई के
वक्त से आपके जेहन में अधुरी
पड़ी है.
पटकथा
की भव्यता रचने के चक्कर में
आशुतोष की फिल्म मोंहेजो दारो
सभ्यता की व्याख्या के बजाय
उस काल के काल्पनिक किरदार
शरमन और चानी की प्रेमकथा बनकर
रह जाती है.
लगान
में ये आजादी विश्वसनीय प्रतीत
हुई थी क्योंकि तब लोगों
जिज्ञासा उस काल के बजाय
अंग्रेजों को हराने वाले
व्यक्ति विशेष भूवन की कहानी
में थी.
पर
यहां विपरित परिस्थितियों
के बावजूद आशुतोष लगान के र्ढे
पर ही चलते नजर आये हैं.
पर
फिरभी तारीफ करनी होगी आशुतोष
की कि साक्ष्य के अभाव के बावजूद
वे उस काल के वेशभुषा,
बोल-चाल
व परिवेश को विश्वसनीयता
प्रदान करने में कामयाब रहे
हैं.
बाकी
का काम तकनीक ने आसान कर दिया
है.
भव्यता
के लिहाज से आशुतोष भी बड़े
स्तर की सिनेमा बनाने वाले
फिल्मकारों में से एक हैं,
और
मोहेंजो दारो में भव्यता के
लिए इस्तेमाल वीएफएक्स तकनीक
का प्रभाव इसी का प्रमाण है.
कहानी
आमरी नगर के युवा शरमन(ऋतिक
रोशन)
की
है,
जो
अपने काका-काकी
के साथ किसानी करता है.
उसकी
हमेशा से इच्छा रही है कि वो
एक बार मोहेंजो दारो नगर का
भ्रमण करे.
काफी
जिद के बाद काका उसे व्यापार
करने के लिए वहां जाने की इजाजत
तो देते हैं पर कुछ हिदायतों
के साथ.
शरमन
को मोहेंजो दारों की गलियां-मकान
सब जाने पहचाने लगते हैं,
जिन्हें
वो सपनों में देखा करता था.
वहां
उसकी मुलाकात पुजारी की बेटी
चानी (पूजा
हेगड़े)
से
होती है.
चानी
का विवाह नगर के प्रधान महम(कबीर
बेदी)
के
बेटे मुंजा से बचपन में ही तय
हो चुकी थी.
कुछ
मुलाकातों के बाद शरमन और चानी
एक दूसरे से प्रेम करने लगते
हैं.
इस
बीच महम व्यापारियों को कर
में बढ़ोतरी का आदेश देता है.
जिसके
खिलाफ शरमन व्यापारियों को
एकजूट करता है.
महम
शरमन को चुनौती देता है,
जिसका
सामना करते हुए शरमन उसके बेटे
मुंजा को खत्म कर देता है.
आखिर
में कुछ रहस्यों का भी खुलासा
होता है.
महम
की साजिशों के शिकार नगरवासियों
को तो शरमन उससे बचा लेता है
पर मोहेंजो दारो नगर को विलुप्त
होने से नहीं बचा पाता.
अभिनय
की दृष्टि से ऋतिक की मेहनत
साफ झलकती है.
खासकर
एक्शन दृश्यों में वो और निखर
जाते हैं.
पूजा
की खूबसूरती उनके अभिनय पर
भारी नजर आती है.
हां
काफी वक्त बाद नीतीश भारद्वाज
को देखना अच्छा लगता है.
ए
आर रहमान का संगीत भी कालखंडों
के लिहाज से मधूर लगता है.
क्यों
देखें-
बडें़
स्तर की ऐतिहासिक फिल्मों
में रूचि रखते हों तो देख सकते
हैं.
क्यों
न देखें-
मोहेंजो
दारो की जानकारियों वाली अधूरी
जिज्ञासा शांत करनी हो तो
निराशा हाथ लगेगी.
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