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हंसाते-हंसाते भागती है हैप्पी
हंसाते-हंसाते भागती है हैप्पी
हैप्पी
भाग जाएगी ऐसी फिल्म है जो
आपको थियेटर में चैन से नहीं
बैठने देगी.
आजकल
क ॉमेडी सिनेमा के नाम पर
फिल्मकार कब फुहड़ता की सीमा
पार कर जाते हैं पता ही नहीं
चलता.
ऐसे
में हैप्पी भाग जाएगी जैसी
फिल्मों का आना आज भी बेहतर
कॉमेडी की उम्मीदें जिंदा
रखता है.
निर्माता
आनंद एल राय की इस फिल्म में
हंसाने के वो सारे तत्व मौजूद
हैं जो उनकी पिछली फिल्मों
में रहा है.
और
निर्देशक मुदस्सर अजीज ने भी
इस बात का पूरा ख्याल रखा है.
हैप्पी
भाग जाएगी अमृतसर से लाहौर
के बीच हैप्पी की भागती जिंदगी
की कहानी है,
जो
हंसाने का कोई मौका नहीं छोड़ती.
डायना
पेंटी ने हैप्पी के किरदार
को क ॉमिकली काफी खूबसूरती
और विश्वसनीयता से निभाया
है.
आने
वाले दिनों में हिंदी सिनेमा
को डायना के रूप में एक सशक्त
अभिनेत्री मिलने वाली है.
कहानी
अमृतसर के हैप्पी(डायना
पेंटी)
की
है,
जो
एक सीधे-सादे
लड़के गुड्डू(अली
फ जल)
से
प्यार करती है.
पर
इससे पहले कि दोनों घरवालों
को बताते हैप्पी के पिता(कंवलजीत)
उसकी
शादी शहर के एक बड़े क ॉरपोरेटर
दमन सिंह बग्गा(जिम्मी
शेरगिल)
से
तय कर देते हैं.
शादी
की तैयारियों के बीच हैप्पी
घर छोड़कर भाग जाती है,
पर
गुड्डू के पास पहुंचने के बजाय
लाहौर पहुंच जाती है.
लाहौर
में हैप्पी की मुलाकात बिलाल
अहमद (अभय
देओल)
से
होती है,
जो
अपने पिता की राजनीतिक
महत्वकांक्षा का शिकार होता
है.
बिलाल
उसे गुड्डू से मिलवाने की
जिम्मेदारी लेता है.
और
इस क ाम में उसकी मदद करती है
उसकी मंगेतर जोया(मोमल
शेख)
और
पुलिस ऑफिसर उस्मान(पीयूष
मिश्र).
पर
इस बीच बग्गा को भी पता चल जाता
है कि हैप्पी पाकिस्तान में
है.
बिलाल
गुड्डू को लेकर लाहौर पहुंचता
है तो पीछे-पीछे
बग्गा भी वहां पहुंच जाता है.
पर
इस पहले ही लाहौर में हैप्पी
की किडनैपिंग हो जाती है.
फिर
शुरू होता है मुसीबतों और
भागदौड़ के बीच एक मजेदार
एंटरटेनमेंट.
कुछ
तर्को को परे रख दें तो फिल्म
मजबूत पटकथा के साथ-साथ
कलाकारों के अभिनय के लिए देखे
जाने लायक है.
डायना
और जिम्मी के अलावा अभय देओल,
कंवलजीत,
अली
फ जल,
मोमल
शेख व पीयूष मिश्र ने भी हंसाने
में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
गाने
भी कहानी के साथ-साथ
ही चलते हैं.
पर
एक-दो
गाने कम करने की गुंजाइश थी.
चेजिंग
सींस का फिल्मांकन कमाल का
बन पड़ा है.
क्यों
देखें-
सिचुएशनल
कॉमेडी का उम्दा स्वरूप देखना
हो तो जरूर देखें.
क्यों
न देखें-वैसे
तो तर्को में दिमाग लगाने का
मौका मिलेगा नहीं,
पर
लगाएंगे तो खींज होगी.
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