Saturday, February 11, 2017

फिल्म समीक्षा

               शाहरुख के प्रशंसकों के लिए है रईस

शाहरुख खान की फैंटेसी और राहुल ढोलकिया के रियलिज्म का मिश्रण ही रईस की सबसे बड़ी यूएसपी मानी जा रही थी. और दोनों ही तारीफ के क ाबिल हैं जिन्होंने इस फिल्म के जरिये एक-दूसरे के जोनर को सहजता से एडॉप्ट कर लिया. शाहरुख ने जब-जब अपने कंफर्ट जोन की बांध तोड़ने की कोशिश की उनके पिटारे से कुछ खास ही निकला. अपनी बनी-बनायी इमेज को दरकिनार कर रईस के नॉन ग्लैमराइज्ड किरदार के लिए उनकी मेहनत इसी का उदाहरण है. औरअस्सी के दशक में गुजरात के शराब माफिया का निगेटिव किरदार निभाकर भी अंत में दर्शकों की सहानुभूति बटोर ले जाना इस मेहनत की सफलता की ओर इशारा.
रईस (शाहरुख खान) और उसका दोस्त सादिक (जीशान अयूब) बचपन से गुजरात के एक शराब माफिया (अतुल कुलकर्णी) के लिए काम करते हैं. बचपन से ही उसके अन्दर मां कि ये बात बैठ जाती है कि धंधा कोई छोटा नहीं होता, और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता, तबतक जबतक किसी का बूरा ना हो. बड़ा होने पर रईस खुद का धंधा शुरू करता है. शराब का अवैध क ारोबारी होने के बावजूद वो हमेशा अपने अम्मी के उसुलों पर अमल करता है. अपनी कमायी से समाज के लोगों की मदद करता है. शराब के अवैध व्यापार के बीच हर बार उसकी टकराहट एसपी मजुमदार(नवाजुद्दीन सिद्दीकी) से होती है. मजुमदार हर बार उसे अपने जाल में बांधने की कोशिश करता है पर रईस अपनी शातिराना चाल से उसे विफल कर देता है. इसके लिए वो सत्ता में बैठे रसूखों तक का इस्तेमाल करने से भी नहीं चुकता. पर राजनीति का इस्तेमाल ही रईस की सबसे बड़ी भूल साबित होती है. अपने फ ायदे के लिए रईस और मजुमदार को अलग-अलग मोहरे की तरह इस्तेमाल करने वाले सत्ता और विपक्ष के राजनीतिज्ञ खुद पर आक्षेप आता देख उन्हीं मोहरों की आपस में भिड़त करवा देते हैं.
शाहरुख ने अपने ग्लैमर से इत्तर कुछ करने का भरपूर प्रयास किया है. पर तारीफ करनी होगी नवाजुद्दीन की जिन्होंने शाहरुख की उपस्थिति और कम फुटेज के बावजूद हर दृश्य में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा जाते हैं. हां फिल्म में माहिरा खान का बेजा इस्तेमाल खलता है. सनी लियोन पर फिल्माये गीत लैला के अलावे बाकी गाने कहानी की राह में रोड़े सरीखे फ ील देते हैं.



No comments: