Saturday, February 11, 2017

फिल्म समीक्षा

हंसते-हंसाते सिस्टम की बखिया उधेड़ता है जॉली एलएलबी 2

कानून और एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम आज किस हद तक खोखलेपन का शिकार हो चुका है इसका मुजायरा आज का हर तीसरा-चौथा शख्स अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करता है. हद तो तब जब इस खोखलेपन से निजात दिलाने की कोशिश करता इक्का-दुक्का आदमी कब खुद इन खोखली गलियों में गुम हो जाता है पता ही नहीं चलता. जॉली एलएलबी के जरिये इन्हीं खामियों को परदे पर उजागर कर चुके निर्देशक सुभाष कपूर इसकी अगली किस्त के साथ कहानी को दो कदम और आगे ले जाते हैं. साफ लहजों में सुभाष ये बता जाते हैं कि कहानी, किरदार या परिवेश के बदलने के बावजूद सिस्टम की खामियां हर जगह मौजूद है. हर ओहदेदार इन खामियों का इस्तेमाल अपने-अपने तरीके से खुद के फ ायदे के लिए करता है. फिल्म हंसते-हंसाते सड़ी-गली स्थिति में आ चुके इसी सिस्टम की परत-दर परत उधेड़ने का काम करता है. फिल्म भले अपनी पहली किस्त से बहुत ज्यादा उम्दा होने के हमारे उम्मीदों पर खरी न उतरे, पर यह पिछली फिल्म से कहीं भी उन्नीस नहीं बैठती.
जगदीश मिश्र उर्फ जॉली (अक्षय कुमार) क ानपुर के एक नामी वकील के असिस्टेंट का काम करता है. घर में प}ी पुष्पा (हुमा कुरैशी) के इशारों पर चलने वाला जॉली कमाई के लिए छोटे-मोटे कानून तोड़ने से भी बाज नहीं आता.
क्योंकि उसे इसे बाहर निकलने का तरीका भी पता था. छोटे-मोटे वकालत से गुजारा करता जॉली क ोर्ट परिसर में खुद का चैंबर लेना चाहता है, जिसके लिए उसे काफी पैसों की जरूरत पड़ती है. इसी पैसे के चक्कर में वो हिना सिद्दकी
(सयानी गुप्ता) का केस अपने सीनियर से लड़वाने का झांसा दे उससे दो लाख एेंठ लेता है. सालों से न्याय की आस में भटक रही हिना इस सदमें से सुसाइड कर लेती है. अपनी गलती पर पछताता जॉली इस केस को हाथ में ले कर हिना के पति इकबाल(मानव कॉल) के फ र्जी एनकाउंटर की केस रिओपन करवाता है. फिर शुरू होती है कानून और सिस्टम के खिलाफ उसकी जंग जिसमें उसके खिलाफ खड़ें हैं लखनऊ के सबसे बड़े वकील माथुर (अन्नू कपूर) व असली गुनहगार पुलिस अधिकारी सूर्यवीर सिंह (कुमुद मिश्र).
फिल्म संजीदे मुद्दों पर भी व्यंग्यात्मक तरीके से प्रहार करती है, जिससे कहानी के प्रति दिलचस्पी बरकरार रहती है. सिस्टम और उसकी आड़ में चल रहे गोरखधंधों को दृश्य दर दृश्य बखूबी पिरोया गया है. जॉली के किरदार में क8ानपूर के अख्खड़पन और किरदार की बेबसी को अक्षय बखूबी जीते हैं. अक्षय का अब अपना एक जॉनर विकसित हो चुका है. जहां वो एक सीमित दायरे में रहकर भी भुमिकाओं की विविधता के साथ खेलते रहते हैं. हुमा कुरैशी और अन्नू कपूर भी भूमिका में रमते हैं, पर हिना के छोटे किरदार में सयानी गुप्ता याद रह जाती हैं. हां पिछली बार की तरह इस बार भी फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि सौरभ शुक्ला रहे. जस्टिस त्रिपाठी के किरदार में वो पिछली फिल्म के अपने सफर को काफी आगे लेकर जाते हैं. बावरा मन और ओ रे रंगरेजा जैसे गाने तो पहले से ही चार्ट बस्टर में हैं. तो अगर आप इस साल की पहली सबसे बेहतरीन फिल्म का मुजायरा करना चाहे तो बेशक थियेटर का रूख कर सकते हैं.
क्यों देखें- जॉली एलएलबी की खुमारी में एक बार फिर उतरना चाहते हों तो जरूर देखें.
क्यों न देखें- पिछली फिल्म से आगे जाकर किसी अधिक उम्दा फिल्म की तलाश हो तो.


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