रितिक की क ाबिलियत की बानगी है क ाबिल
अपने
समकालीन अभिनेताओं में रितिक
बेशक सबसे समर्थ अभिनेता हैं.
राकेश
रौशन और रितिक रौशन का जब-जब
मेल हुआ है दर्शकों को कुछ
अनुठा हासिल हुआ है.
क
ाबिल को भले राकेश रौशन ने
निर्देशित नहीं किया पर फिल्म
देखते वक्त कहानी से लेकर
फिल्मांकन तक पर उनकी छाप साफ
दिखती है.
उनके
साथ ने अपनी पिछली कुछ फिल्मों
की असफलता के बावजूद रितिक
में एक अलग आत्मविश्वास का
संचार कर दिया है.
संजय
गुप्ता निर्देशित क ाबिल रितिक
के अभिनय का एक नया प्रतिमान
स्थापित करती है.
ब्लाइंड
किरदार की अंतर्दशा और मैनरिज्म
को विश्वसनीय और असरदार तरीके
से परदे पर जीते रितिक क ाबिल
के साथ खुद को दो कदम आगे ले
जाते हैं.
संजय
ने फिल्म के लिए हिंदी सिनेमा
के बहुप्रचलित फ ामरूले प्यार
और बदले का आधार चुना है.
जिसे
नये क्लेवर के साथ परोसकर
उन्होंने फिल्म को देखने लायक
बना दिया है.
डबिंग
आर्टिस्ट रोहन भटनागर (रितिक
रौशन)
और
सुप्रिया (यामी
गौतम)
ब्लाइंड
कपल हैं.
एक
क ॉमन लेडी के जरिये दोनों की
मुलाकात होती है.
पहली
मुलाकात से ही रोहन की जिंदादिली
सुप्रिया को भा जाती है.
दोनों
एक दूसरे को पसंद करने लगते
हैं और शादी कर लेते हैं.
रोहन
के मोहल्ले में ही अमित (रोहित
रॉय)
रहता
है जिसे पहली नजर में सुप्रिया
भा जाती है.
अपने
क ॉरपोरेटर भाई माधवराव शेलार
(रोनित
रॉय)
के
पावर के नशे में चूर अमित अपने
दोस्त के साथ मिलकर सुप्रिया
का रेप करता है.
रोहन
और सुप्रिया इसकी शिकायत पुलिस
में करना चाहते हैं पर पुलिस
इससे इनकार कर देती है.
दोनों
इस सदमें से बाहर आने की कोशिश
में ही रहते हैं कि अमित फिर
से एक रात अपनी हरकत दुहराता
है.
इस
सदमें से सुप्रिया आत्महत्या
कर लेती है.
सिस्टम
से हारा रोहन पुलिस अधिकारी
चौबे को खुला चैलेंज देता है
कि वो इसमें शामिल सभी गुनहगारों
को मार देगा और पुलिस उसका कुछ
नहीं बिगाड़ पाएगी.
अपने
अंधेपन को अपनी ताकत बनाता
रोहन तब अपने मिमिक्री एबिलिटी
का इस्तेमाल कर उनके खिलाफ
जाल रचता है.
और
एक-एक
कर सारे गुनहगारों को मौत के
दरवाजे तक पहुंचाता है.
अंधे
किरदार के बावजूद नृत्य और
एक्शन के दृश्यों में रितिक
की सहजता कहानी में विश्वास
जगाती है.
चेहरे
की भाव-भंगिमाओं
और आंखों की चमक के जरिये अभिनय
करते रितिक किरदार की जड़ तक
जाते नजर आते हैं.
खल
चरित्रों में रोहित और रॉनित
का अभिनय भी कहानी के प्रभाव
का दोगुना करता है.
भ्रष्ट
पुलिस अधिकारी की भुमिका में
नरेन्द्र झा सराहनीय हैं.
फिल्म
के गाने भी क ानों में मधुरता
घोलते हैं.
क्यों
देखें-
रितिक
रौशन के उम्दा अदाकारी की
मिसाल देखनी हो तो.
क्यों
न देखें-
कहानी
से किसी नयेपन की उम्मीद ना
रखें.
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