दास्तान
इंडो-पाक
के एक अनऑफिशियल वार की ‘द
गाजी अटैक’
वार
पर आधारित कुछेक उम्दा भारतीय
फिल्मों में द गाजी अटैक शुमार
की जाएगी.
फिल्म
भले उस युद्ध की दास्तान कहती
है जिसका भारतीय रिकार्ड में
कोई जिक्र नहीं,
पर
क्लासीफाइड वार के सत्य घटना
पर आधारित यह फिल्म निर्माता-निर्देशक
की क्रियेटिव सोच का उत्कृष्ट
नमूना है.
संकल्प
रेडी के फिल्म की कहानी भारत-पाक
के चार घोषित युद्धों से इतर
1971
के
उस युद्ध की कहानी है जिसमें
पाकिस्तान ने अपने सबमरीन
गाजी के जरिये आइएनएस विक्रांत
और भारत के पूर्वी बंदरगाहों
को तबाह करने की योजना बनायी
थी.
तब
सर्च ऑपरेशन पर निकले एस 21
के
कैप्टन रणविजय सिंह(के
के मेनन)
और
उनकी टीम ने दुश्मन सबमरीन
की तलाश कर उसे क्लासीफायड
वार के जरिये खत्म कर दिया.
बांग्लादेश
बनने के तुरंत पहले की ये घटना
परदे पर एक डिस्क्लेमर के
जरिये शुरू होती है.
जिसमें
ये बताया गया कि कहानी एक सत्य
घटना पर आधारित किंतु कल्पनाओं
के सम्मिश्रण से बनी है.
क्योंकि
इसका कोई आधिकारिक रिकार्ड
कहीं नहीं मिलता.
तब
पूर्वी पाकिस्तान में उपजे
विद्रोह और वहां के शरणार्थियों
को भारत में शरण देने की वजह
से भारत पाकिस्ताना की नजरों
का क ांटा बन चुका था.
बदले
की चाहत में पाक ने अपने सबसे
खतरनाक सबमरीन गाजी को पूर्व
से पानी के रास्ते रवाना किया.
जिसका
लक्ष्य भारत के आइएनएस विक्रांत
और विशाखापत्तनम के बंदरगाह
को तबाह करना था.
ताकि
भारत की शक्ति कमजोर कर उससे
युद्ध में हराया जा सके.
नौसेना
अधिकारी इस मिशन की टोह लेने
के लिए भारतीय सबमरीन एस21
भेजते
हैं,
जिसका
कैप्टन रणविजय सिंह है.
रणविजय
गरम मिजाज ऑफिसर था जो जंग के
मैदान में अटैक के परमिशन के
भरोसे नहीं बैठता.
क्योंकि
उसका बेटा 65
के
जंग में ऐसी ही परमिशन के इंतजार
में शहीद हो चुका था.
उसके
इसी मिजाज से परेशान होकर
नौसेना अधिकारी ऑपरेशन में
उसके साथ अजरून वर्मा (राणा
दग्गुबाती)
और
देवराज (अतुल
कुलकर्णी)
को
भेजते हैं.
उधर
पनडूब्बी गाजी का कैप्टन
रज्जाक भी काफी आक्रामक था.
वो
एस 21
को
नष्ट करने के लिए एक के बाद एक
कई अटैक करता है.
पर
रणविजय,
अजरून
और देवराज की रणनीति उसे विफल
करती हुई गाजी को तबाह कर देती
है.
इस
अनऑफिशियल वार में कुछ शहादत
भी देनी पड़ती है.
पर
जिंदा रहे लोग भी पहचान और
मेडल से वंचित रह जाते हैं.
फिल्म
अपने टेक्नीकल एस्पेक्ट्स
की वजह से भी देखे जाने लायक
है.
समुद्र
के भीतर युद्ध और सबमरीन के
अंदर के दृश्यों का फिल्मांकन
कमाल का प्रभाव उत्पन्न करता
है.
केके
मेनन,
राणा
दग्गुबाती के साथ अतुल कुलकर्णी
का बेहतरीन अभिनय फिल्म को
मजबूती से थामे रखता है.
हां
फिल्म में दो जगहों पर राष्ट्रगान
का इस्तेमाल है जो कहानी के
लिहाज से बिलकुल वाजिब लगता
है.
तो
फिल्म देखते वक्त थियेटर में
अगर आप भी उसे उचित सम्मान दें
तो निश्चित ही फक्र महसूस
होगा.
क्यों
देखें-
युद्ध
की पृष्ठभूमि पर आधारित एक
उम्दा फिल्म देखनी हो तो.
क्यों
न देखें-
मसाला
मनोरंजन की चाहत हो तो दूर ही
रहें.
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