Thursday, April 25, 2013

वो सम्मान वापस दिला दो


टिंग-टॉंग..डोर बेल का बटन दबाते हुए मेरे मन में एक अजीब सी खुशी थी. आज पहली बार सांता का गेटअप पहन किसी को गिफ्ट बांटने निकला था. सोचा दो-चार लोगों के चेहरे पर ही मुस्कान ला दूंगा तो मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी होगी.
क ौन? अन्दर से किसी लड़की की आवाज आयी.
मै सांता..गिफ्ट देने आया हूं.
सांता! (खुशी से चहकते हुए) पर अगले ही पल एक मायुसी भरी आवाज आयी- सॉरी सांता अभी मम्मी-पापा नहीं हैं, दरवाजा नहीं खोल सकती. कल दिन के उजाले में आना, आओगे न..
मम्मी ने मना किया है! पर ?यों?
वो तो नहीं पता, पर मम्मी कहती हैं, जबतक मै घर ना लौटूं दरवाजा नहीं खोलना. ?योंकि रात में अब अपना घर भी सेफ नहीं है,सॉरी सांता..
बुङो मन से मैने अगला दरवाजा नॉक किया. क ी-होल से झांकते हुए फिर किसी युवती की चहकती आवाज आयी-
अरे सांता! लगा शायद पहला गिफ्ट इसी के हाथ जाना लिखा है.
हां, मै सांता, गिफ्ट देने आया हूं. दरवाजे की छिटकनी खुली,पर अगले ही पल-
तुम सचमुच के सांता हो?
मतलब?
मतलब, कहीं बाकियों की तरह तुम्हारे मुखौटे के पीछे भी कोई..
मै समझा नहीं..
रहने दो सांता, अब तो क ौन चेहरा इंसान का है और क ौन शैतान का पता
ही नहीं चलता. माफ करना,मै तुमपर विश्वास नहीं कर सकती.
बुङो मन से खुशियों के सारे गिफ्ट्स दर्द की पोटली में समेटे मै वापस लौटने लगा. तभी नजर घने क ोहरे और रात के साये में फुटपाथ पर बैठी एक लड़की पर पड़ी. सोचा शायद ये गिफ्ट्स इसे गम के साये से बाहर ले आये.
ये लो बेटी..शायद तुम्हें ही इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. गिफ्ट उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला.
उसने कातर निगाहों से मुङो देखा और कहा-
गिफ्ट्स मेरे किस क ाम के..मुङो जो चाहिए वो तुम नहीं दे सकते..
?या चाहिए, बताओ तो..
अभी थोड़ी देर पहले कुछ शरीफों ने मेरी आबरू की चादर के चिथड़े कर डाले. ?या कहीं से वो चादर ला सकते हो, ?या वो सम्मान वापस दिला सकते हो!
मै नि:शब्द रात के सन्नाटे में उसकी सिसकियां सुनता जा रहा था, और सांता बना अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा था.                                                                                                                                     -गौरव





No comments: