Thursday, April 25, 2013

बाबुजी, एक बोरा गोइठा ले ले अइह


आज सुबह अचानक घुमते-घुमते मै दो-तीन मुहल्लों की सैर कर बैठा. बिना किसी पूर्व नियोजित इस सैर से हालांकि मुङो कोई फ ायदा तो नहीं हुआ, पर अलग-अलग घरों के कुछ मजेदार वाकये मेरे कानों में पड़े. लीजिए, आप भी सून लीजिए-
सीन 1:
मिसेज शर्मा के घर अरली मॉर्निग मिसेज वर्मा आ धमकती हैं-
‘‘हाय! मिसेज शर्मा’’
सुबह-सुबह उन्हें देख मिसेज वर्मा की दायीं आंख फड़क उठी -
‘‘अरे मिसेज वर्मा. आइए-आइए, इतनी सुबह-सुबह’’
‘‘हां काफी दिन हो गये थे. इधर से गुजर रही थी सोचा मिलती चलूं’’
‘‘हां-हां क्यूं नहीं,बैठिए. पर माफ कीजिएगा मिसेज वर्मा कल दूधवाले ने दूध नहीं दिया वरना चाय जरूर पिलाती’’
‘‘अच्छा कोई बात नहीं, मै नींबू वाले चाय से ही क ाम चला लूंगी’’
‘‘अब क्या बताएं मिसेज वर्मा, आखिरी नींबू बची थी, वो भी कल रात ही मैने चेहरे पर लगा ली’’
‘‘अच्छा कोई बात नहीं. मै भी जरा जल्दी में हूं, वो क्या है कि आपसे एक जरूरी बात करनी थी’’
मिसेज शर्मा समझ गयीं कि दायीं आंख फड़कने का रिजल्ट आने वाला है.
‘‘जी कहिए न..’’
‘‘वो क्या है कि कल ही रात मेरा सिलिंडर जवाब दे गया. सो अगर आप..’’
‘‘बस-बस मिसेज शर्मा. मै समझ गयी. अब आपसे क्या छुपाएं, सब्सिडी वाला पांचवा सिलिंडर चल रहा है, इसीलिए चाय-वाय पीना भी छोड़ दिया है. अब आखिरी सिलिंडर भी आपको दे दूंगी तो अगली बार मुङो साढ़े आठ सौ भरने पड़ेंगे. और कोई मदद चाहिए तो जरूर बताइए, आखिर वर्षो का साथ है, बस सिलिंडर की बात भूल जाइए. ’’
फिर दरवाजे से निकलती मिसेज वर्मा का लटका मुंह देख मै वहां से आगे निकल लिया-
सीन 2  चाय की फरमाइश करते धनेसर बाबु ज्योंहि डायनिंग टेबल पर पहुंचे मिसेज हत्थे से उ?ाड़ गयीं.‘‘आखिरी सिलिंडर है सब्सिडी वला,इहो आपके चाय-ताय के फेर में खतम हुआ न तो बुङिाएगा. चुल्हा फुंकवाएंगे आप ही से.’’
‘‘अरे का कहती हो, अच्छा दू गो बिस्कुटे दे दो, पानी पी के क ाम चला लेंगे’’
‘‘अच्छा त एगो औरो बात सून लीजिए. कल गैस एजेंसी वला आया था,कह रहा था मियां-बीवी दूनो के नाम पर कनेक्शन है,एगो को डेडे कर देगा’’
‘‘का! (थोड़ा सोचते हुए) ए मैडम हम का सोच रहे थे, काहे न हमलोग टेंपरोरी तलाक ले लें. कह देंगे अलगे-अलगे खाना बनता है, त दूनो कनेक्शन वैध रहेगा ’’
‘‘पगला-उगला गए हैं का जी. मुंआ ई सिलिंडर जे न करावे. जइसे चलाना है चलाइए पर भोरे-भोर हमको मत बमकाइए’’
इससे पहले ऊ और गरमाती, हम भी वहां से खिसक लिए-
सीन 3:
अचानक किसी के फोन पर जोर-जोर से गपियाने की आवाज सून मै ठिठक गया. 
‘‘त हम का करीं बाबुजी, आइल बानी पटना पढ़ाई करे, अब इहां पढ़ीं कि खाए-पिए के फेर में हर पांचवा दिन सौ-सौ रुपया भरीं’’
‘‘लेकिन ए बउआ, खइबù-पियबù ना त पढ़ाई कइसे करबù’’
‘‘अब रउओ सरकारे वला भाषा मत बोलीं. एजेंसी में स्टूडेंट ला गैस नइखे आ बगली में सौ-सौ रुपया किलो गैस ब्लैक करावे ला जाने कहां से सिलिंडर आ जाता सरकारी गोदाम में. एगो क ाम करù बाबुजी..’’
‘‘बोल न बउओ’’
‘‘अबरी पटना अइहù त एक बोरा गोइठे ले ले अइहù. लिट्टी सेंक के खाइब पर अब सौ-सौ रुपये किलो गैस ना भराइब’’
                                                                                                  व्यंग्य
                                                                                                   गौरव

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