Thursday, April 25, 2013

..यहां पे सब गांधी-गांधी है


                           रघुपति राघव राजा राम.. भू?ो पेट सोने क ी तमाम कोशिश बेकार जाने के बाद ध्यान बंटाने के लिए धनेसर पेट पर हाथ र?ाकर गुनगुनाने लगा. बीच-बीच में भू?ा से चिहुंकते चिंटुआ क ी आवाज भी गाने में बैकग्राउंड म्युजिक क ा अहसास करा रही थी. अचानक ?ाट्-?ाट् क ी बाहर से आती आवाज से धनेसर क ा आवाज भंग होता है.पहले तो उसने सोचा उठकर दे?ाूं कौन है, फिर सोचा घर में एक्को दाना त है नहीं, चोरो-चुहाड़ होगा तो का ले जाएगा. इ सोचकर ऊ फिर से गुनगुनाने लगा. पर तेज होती ?ाट्-?ाट् क ी आवाज ने उसे भू?ा जितना परेशान कर दिया. मन मसोसकर उठा और ?ींजते हुए बोला-
‘‘अरे कउन है हो, अधरतियो में ?ाट्-?ाुट कइले है, सुतहूं देगा कि ना..’’
‘‘धनेसर,अरे हम हैं.. गांधी’’
‘‘गांधी! अरे कउन गांधी..ई गांव में तो कउनो गांधी है नहीं,कउनो चोर-चुहाड़ तो न-न हो जी’’
‘‘अरे नहीं भाई,हम हैं मोहन दास..अरे तुम्हारा अपना महात्मा गांधी.’’
‘‘महात्मा गांधी! (आश्चर्य से) ढेरे पउआ चढ़ा लिए हो का?’’
‘‘विश्वास नहीं होता तो पास आके दे?ा लो’’
अंधेरे में धनेसर ने पास जाके दे?ा,‘‘शकल से तो लग रहे हैं बापू टाइप, पांचवा के किताब में दे?ो थे, पर आप इहां कइसे..’’
‘‘बड़ा मन कर रहा था दे?ाने का अपने देश को, यहां के लोग क ो,सो चला आया, पता नहीं लोगों को हम याद-वाद भी हैं कि नहीं’’
‘‘याद! का कह रहे हैं बापू..अरे ई देश में तो बिना आपके किसी को चैने नहीं मिलता है, समुचा देश आपहीं के पीछे तो भाग रहा है.’’
‘‘सच धनेसर!’’
‘‘आउर न तो का, विश्वास नहीं है त चलिए घुमा लाते हैं. अपना चश्मा से दे?िाएगा त ?ाुदे मान जाइएगा.’’
‘‘ये बात है तो चलो, अब तो हम भी ए?साइटेड हो गये हैं आजाद भारत के गांधी प्रेम को दे?ाने के लिए ’’
‘‘बचाओ-बचाओ’’
अचानक सड़क पर चार लोग किसी की पिटाई करते दि?ो.
‘‘अरे-अरे ये हिंसा ?यूं कर रहे हैं लोग’’
‘‘चुपचाप दे?ाते न जाइए बापू, सामने बइठल ?ाकी वर्दी वाला त कुछ करीए नहीं पा रहा है, आप का कर लीजिएगा.’’
तभी मार ?ाने वाला भागकर ?ाकी वाले के पैरों में गिर पड़ता है-
‘‘बचा लीहिं हुजूर, सब मिलके मार दी हमरा..’’
‘‘भागता है कि न एइजा से, ई हमरा थाना से बाहर का मैटर है, एगो हरिहर पत्ता निकाल तो अभी के अभी मामला हियें सलटा देते हैं’’थानेदार अपना लाठी दि?ाते हुए बोला.
‘‘दे?ो न बापू, अपने परम भक्त क ो..आपके लाठी का कइसे उपयोग कर रहा है ’’
‘‘ये..मेरा भक्त?’’
‘‘आउर न तो का? आप ही न कहे थे बूरा मत दे?ाो,तो ई लोग कुच्छो बूरा दे?ाता ही नहीं है, बस आप ही के नाम का माला जपता रहता है’’
‘‘मुर्?ा मत बनाओ धनेसर, इसने तो एक बार भी मेरा नाम नहीं लिया’’
‘‘सब बूझ जाइएगा बापू, चलिए एगो और परम भक्त से मिलवाते हैं आपको’’
घुमाते-घुमाते धनेसर गांधी जी को ले गया विधायक जी के आवास पर-
‘‘इ है हमरे विधायक जी का घर.?िाड़की से झांक के दे?िाए न, आप भी गदगदा न गए विधायक जी का गांधी प्रेम दे?ा के तो कहिएगा.’’
गांधी जी ने जिस तेजी से अपना सिर ?िाड़की से अन्दर किया उससे दोगूने तेजी से बाहर निकाला.
‘‘हे राम! ये जन प्रतिनिधि तो नोटों की गड्डी पे सोया है, पं?ा भी नोटों से ही झल रहा है ’’
‘‘असली चीज तो आप दे?ाबे नहीं किये, तनि गौर से दे?िाए न, सब बुझा जाएगा’’
मन मसोसकर गांधी जी ने एक बार फिर सिर अन्दर किया, अन्दर का नजारा दे?ा उनकी तो आं?ों चौड़ी हो गयी. विधायक जी हाथ में पांच-पांच सौ के नोटों की गड्डी लिए बेतहाशा चूमे जा रहे थे. नोट पर अपनी तस्वीर दे?ा उन्हें पल में ही धनेसर की सारी बात समझ आ गयी.     चुपचाप सिर बाहर किया और और इससे पहले वो कुछ बोलते धनेसर ने कहा-
  1. ‘‘दे?ो बापू, ई लोग हैं आपके दूसरे भक्त. बूरा मत सुनो वाले. कउनो की सुनते ही नहीं है, बस लगल रहते हैं आप ही के भजन-कीर्तन में’’

‘‘अब और मत बताओ धनेसर, सब समझ गए हम. लोगों को अब हमसे ज्यादा हमारे फोटो से प्यार हो गया है ’’
‘‘प्यार! अरे अइसा-वइसा प्यार, आपके सि?योरिटी के लिए तो अब आपको इंडिया के बदले विदेशी बैंक में र?ाने लगा है लोग’’
‘‘बस करो भाई,अब यही सुनना बाकी रह गया था. जिंदगी भर स्वदेशी-स्वदेशी का रट लगाने वाले को मरने के बाद विदेशी बैंक में भेज रहा है, भगवान जाने किस जनम का बैर निकाल रहा है’’
‘‘अभी कहां, आप त रात में आयें हैं, दिन में आते तब न आपको दि?ाते, सरकारी बाबू के दराज से लेके  संसद के मेज तक, कोयला  के ?ादान से आदर्श मकान तक, गाय-भैंस के चारे से स्विस के द्वारे तक,चारों ओर त आपे-आप हैं’’
‘‘?यों शर्मिदा करते हो धनेसर, अब और दे?ाने की हिम्मत नहीं है मुझमें. अब तो यहां आने में भी..?ौर छोड़ो, जाते-जाते ये भी बता ही दो मेरे तीसरे भक्त आजकल कहां हैं’’
‘‘ई तो मते पुछिए बापू..’’
AA‘‘डरो मत, जब इतना कुछ ङोल लिया तो ये भी ङोल ही लूंगा’’
‘‘त सुनिए, उहां तक पहुंच नहीं है, न तो उनसे भी मिलवाइए देते. टॉप लेबल पर बइठल है लोग, बस एक्के राग अलापते हैं..सौ बूरी बातें बोलने से मेरी एक ?ामोशी भली. अब रहने भी दीजिए, सब ?ाोलिए के बोलवाइएगा क ा!’’
‘‘अब बोलने को और बचा ही ?या!’’
?ाट्-?ाट् की आवाज के साथ लौटते बापू की सिसकियां रात की ?ामोशी में गूम होती जा रही थी और धनेसर अपनी भू?ा से पीछा छुड़ाने के लिए मस्ती में गुनगुनाता जा रहा था-
‘‘यहां पे सब गांधी-गांधी है’’
                                                                                           गांधी जयंती पर व्यंग्य
                                                                                                  गौरव

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