Thursday, April 25, 2013

जीना तो इसी का नाम है



ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो,भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी..
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो क ागज की कश्ती वो बारिश का पानी..
क ौन होगा जो ये गाना सूनकर अपने बचपन में न लौटना चाहे. पर पिछले चार दिनों में मै जिन-जिन से मिला उन्हें दे?ाकर पहली बार अहसास हुआ कि आज से दस-पन्द्रह साल बाद वो शायद ही अपना बचपन फिर से जीना चाहें. चाहे वो कचरे के ढेर पर अपना जीवन तलाशती  दूर्गा हो या स?िायों के संग कूड़े के ढेर से मिले ?िालौनों में अपनी ?ाुशियां तलाशती तीन साल की मुस्कान. कहते हैं बचपन जीवन का सबसे ?ाूबसुरत लम्हा होता है. ताउम्र आदमी उन्हीं लम्हों में अपने जीवन की सारी ?ाुशियां तलाशता है. गुड्डे-गुड़ियों के ?ोल में हर बचपन अपनी पूरी जिंदगी संवार रहा होता है. पर जब वही बचपन अपने नाजूक पलों में जवानी और बुढ़ापे के थपेड़े ङोलने को मजबूर हो, बि?ार चुकी जिंदगी को कूड़े-कचरे में मिले तार से सीने को मजबूर हो, तो कोई कैसे उम्मीद करे कि जीवन के किसी मोड़ पर वो फिर से वही लम्हा जीना चाहेगा.
एक चॉकलेट के टूकड़े में ?ाुशियों का हर रंग तलाशती आरती की आं?ाों ने मेरे लिए ?ाुशियों के मायने ही बदल दिये. नये कपड़े पहनते चांद के चेहरे की चमक दे?ाकर लगा जैसे वो चांद के लिए सिर्फ कपड़े भर नहीं, बल्कि ?ाुशियों का जामा हो. कभी सोचा भी नहीं था कि जिसे हमने एक छोटा सा अभियान समझा था वो केवल अभियान न रहकर किसी के चेहरे की मुस्कान बन जाएगा. ‘मै भी ?िालौने छूना चाहती हूं’,‘कचरे में ही अपनी जिंदगी तलाशता हूं’, ‘अब तो रेलवे प्लेटफार्म ही मेरा संसार है’, ‘जिस दिन कबाड़ बेचकर बीस रुपया कमा लिया, अपनी तो उसी दिन दीवाली है’ इन ?ाबरों को पढ़कर दिल में उमड़े जज्बातों की छोटी सी लहर ने उन बच्चों से मिलते ही जैसे सैलाब का रूप ले लिया. लगा जैसे या ?ाुदा! कोई इन्हें मेरा बचपन दे दे. नन्हें-नन्हें हाथों में जब हमारी टीम ने ‘आओ दीप जलाएं ’अभियान के तहत चॉकलेट्स, बिस्किट्स, मिठाईयां, कपड़े और दीये र?ों तो यकीन जानिए दीपावली के सैकड़ों दीपों की चमक से कई गुना ज्यादा चमक उनकी आं?ाो में उतर आयी. जज्बातों की रौ में बच्चों के ?ाुशियों की लौ जल उठी. हर वो हाथ जिसने इस लौ को जलाने में अपना सहयोग दिया उनके जज्बे को सलाम. चाहे वो स्कूल के स्टूडेंट्स हो,जिन्होनें अपने दीपावली पॉकेट मनी को किसी की मुस्कुराहट पे कुर्बान कर दिया या गृहणियां, जिन्होनें कहीं न कहीं उन बच्चों में भी अपने बच्चे की अ?स दे?ी. पर सिलसिला यहीं न थमने पाये, ?योंकि अगर आपने एक भी बचपन को उसकी मासुमियत लौटा दी तो यकीन जानिए, जमाने भर की ?ाुशियां उस एक ?ाुशी के आगे फ ीकी पड़ जायेगी. आज इस अभियान ने सचमुच सि?ा दिया कि-
                         किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
                         किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, तो जीना इसी का नाम है..
                                                                                                       -गौरव    


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