Friday, April 28, 2017

फिल्म समीक्षा


            इंतजार के तपते रेगिस्तान पर पानी की बौछार              सी सूकून देगी बाहुबली द कन्क्लूजन

सिनेमा के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा जब फिल्म के पहले भाग में छोड़े गये एक सवाल के जवाब के लिए दर्शकों ने लगभग दो वर्षाें तक इतनी बेताबी दिखाई होगी. माउथ पब्लिसिटी के सहारे साल 2015 की सबसे बड़ी हिट साबित हुई बाहुबली अपने साथ एक ऐसा सवाल छोड़ गयी थी जो अगले दो साल तक देश के सबसे बड़े सवाल के तौर पर आम जिंदगियों के बीच तैरता रहा. सवाल था आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? इस सवाल ने फिल्म से जुड़ी टीम पर उम्मीदों का ऐसा बोझ डाल दिया था कि उनकी एक चूक फिल्म का मटियामेट कर सकती थी. पर तमिल, तेलुगु, हिंदी और मलयालम में एक साथ रिलीज बाहुबली द कन्क्लूजन इंतजार में तपते रेगिस्तान सरीखे हो चुके दर्शकों के मन-मस्तिस्क पर पानी की बौछार सी सूकून देगी. पिछली फिल्म से ज्यादा भव्य, रोचक व सौंदर्यपरक बाहुबली द कन्क्लूजन लाजर्र देन लाइफ छवि वाली फिल्म की अद्भूत मिसाल है. लार्जर देन लाइफ वाली छवि ने हम सब के मन में तभी जड़ जमा ली थी जब हम बचपन में हर रात दादी-नानी के सुनाये किस्सों की आगोश में होते थे. फैंटेसी और कपोल-कल्पनाओं में बुने उन कहानियों का असर कुछ यूं होता कि सुनी हुई कहानियां भी हम बार-बार उसी उत्सुकता से सुनते. उस किस्सागोई ने हम सब को इस कदर जकड़ा कि आज भी उस परिवेश और रोचकता के ताने-बाने में बुनी हर कहानी हमें चुंबक की भांति खींच लेती है. बाहुबली उसी किस्म की कहानी है, दृश्य संयोजन के साथ. जिसका संसार फंतासी और लाजर्र देन लाइफ के आवरण के बावजूद खालिस देसी और बहुपरिचित सा लगता है. जिसका संसार फंतासी और लाजर्र देन लाइफ के आवरण के बावजुद खालिस देसी और बहुपरिचित सा लगता है. और तारीफ करनी होगी पटकथा लेखक केवी विजयेंद्र प्रसाद, निर्देशक एस एस राजामौली और उनकी वीएफएक्स टीम की, जिन्होंने पहले भाग में उस फंतासी भरी दुनिया का अधिकांश हिस्सा घुमाने के बावजूद दूसरे भाग में रोचकता और भव्यता की उत्सुकता चरम पर रखी. जिसने दर्शकों को उसकी जिजिविषा शांत होने तक थियेटर की सीट से चिपकाए रखा.
कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पिछली फिल्म का अंत हुआ था. कटप्पा (सत्यराज) और महेंद्र बाहुबली (प्रभास) के बीच उस संवाद के जरिये कहानी फ्लैशबैक में जाती है जिसमें कटप्पा बताता है कि उसके हाथों ही माहिस्मति के सम्राट अमरेंद्र बाहुबली (प्रभास) की हत्या हुई थी. राजमाता शिवगामी देवी(रमैया कृष्णण) के आशीर्वाद से सम्राट बनने की तैयारी में जुटा अमरेंद्र कटप्पा के साथ देशाटन पर निकलता है. बीच रास्ते उसकी मुलाकात राजकुमारी देवसेना (अनुष्का शेट्टी) से होती है और दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठते हैं. वो देवसेना को माहिस्मति ले आता है. पर परिस्थितियां ऐसी करवट लेती हैं कि अमरेंद्र बाहुबली की हत्या हो जाती है और भल्लाल देव (राणा दग्गूबती) माहिस्मति का सम्राट बन जाता है. फिर कहानी वर्तमान में लौटती है और अपने पिता की मौत से आक्रोशित महेंद्र बाहुबली भल्लाल देव के खिलाफ जंग का आह्वान कर देता है.
बाहुबली द कन्क्लूजन का स्पेशल इफेक्ट्स निश्चित रूप से पिछली फिल्म का विस्तार माना जा सकता है. पिछली फिल्म से अजिर्त पैसे का इस फिल्म के मेकिंग में लगाने का निर्देशक का बयान परदे पर चरितार्थ होता दिखता है. स्पेशल इफेक्ट्स से रचित विहंगम दृश्य, महलों और पहाड़ों के विशालकाय सेट के साथ झरने, जलप्रपात, पहाड़ और जंगल कहीं से भी आभाषी प्रतीत नहीं होते. प्रभास और राणा दग्गुबाती का अभिनय क ौशल और तकनीकी सामंजस्य देखने योग्य है. युद्ध के दृश्यों में दोनों और भी आकर्षित करते हैं. देवसेना के किरदार में अनुष्का शेट्टी की चपलता व चंचलता देखने योग्य है. आखिर में, मजबूत पटकथा, उम्दा अभिनय व तकनीक के बेजोड़ संगम से हॉलीवूड की पीरियड ड्रामा वाली उत्कृष्ट फिल्मों की सीमा रेखा में प्रवेश करती दिखती बाहुबली हिंदी सिनेमाई उन निर्माता-निर्देशकों के लिए एक सबक सरीखी है जो लाजर्र देन लाइफ और किस्सागोई के नाम पर क ामचलाऊ सिनेमा के पैरोकार बने बैठे हैं.
क्यों देखें- इसकी वजह तो पिछले दो साल से जगजाहिर है.
क्यों न देखें- वजह की तलाश गैरवाजिब है.


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