कमजोर कहानी में पिस गये दिल्ली के सात उचक्के
http://epaper.prabhatkhabar.com/967679/PATNA-City/CITY…
सिचुएशनल कॉमेडी की सबसे बड़ी जरूरत होती है एक मजबूत स्क्रिप्ट. कहानी में जरा सी चुक हुई नहीं कि जी तोड़ मेहनत के बावजूद अभिनय के तमाम योद्धा मोर्चे पर धराशायी हो जाते हैं. कमोबेश यही स्थिति अभिनय के सात महारथियों की हुई फिल्म साच उचक्के में. निर्देशक संजीव शर्मा ने पुरानी दिल्ली की गलियों और गालियों को तो परदे पर खूबसूरती से तराशा, पर कहानी की बूनावट में कमजोर पड़ गये. उनकी इस कमजोरी को मनोज बाजपेयी, केके मेनन व विजय राज जैसे अभिनेताओं ने कॉमेडी के उम्दा स्तर से पाटने की भरपूर क ोशिश की, पर वे सब मिलकर भी इसे उत्कृष्टता की श्रेणी में नहीं ला सके. पर ऐसा नहीं कि फिल्म में देखने लायक कुछ भी नहीं है. पुरानी दिल्ली की तंग गलियां, वहां रचे-बचे निम्नवर्गीय परिवार की जिंदगियां और उन अभाव की गलियों में गुम आंखों में क ामयाबी के बुनते ख्वाब. संजीव की फिल्म उस परिवेश की सैर कराती है जहां बरसों से फिल्मकार जाना भूल चुके थे. और यही फिल्म की खासियत सी बन जाती है.
कहानी पुरानी दिल्ली के सात उचक्कों की है जो छोटे-मोटे अपराध कर के जिंदगी चला रहे होते हैं. उनकी ख्वाहिशें रिहाइशी और मौज-मस्ती भरी लाइफ से ज्यादा नहीं है. पप्पी(मनोज बाजपेयी) उचक्कों के गैंग का लीडर है. समस्या तब शुरू होती है जब पप्पी को सोना(अदिति शर्मा) से प्यार हो जाता है. सोना की मां के सामने वह खुद को एक रसूखदार के रूप में पेश करता है. और फिर खुद को अमीर दिखाने के चक्कर में वो एक बड़ा प्लान करता है. सब मिलकर पुरानी हवेली के दीवान साहब(अनुपम खेर) का खजाना लूटने का प्लान करते हैं. इस कोशिश में उनसे कई गलतियां होती हैं. और उन गलतियों को छुपाने में वो और गलतियां करते जाते हैं. खजाना लूटने के उनके प्लान में बार-बार उनका सामना इंस्पेक्टर तेजपाल (केके मेनन)से होता है. अपनी-अपनी जरूरतें पूरी करने के ख्याल से इस प्लान में जूड़ें इन उचक्कों की जर्नी उन्हें किस मोड़ पर ले जाती है इसका मुजायरा आप थियेटर में करें तो बेहतर होगा.
पहली बार फु ल क ॉमिकल किरदार निभा रहे मनोज यहां भी अपने पूरे रंग में दिखते हैं. क ॉमिकल टाइमिंग के महारथी माने जाने वाले विजय राज और केके मेनन के साथ के दृश्यों में मनोज और निखर जाते हैं. सहकलाकारों में अदिति शर्मा, अन्नु कपुर और अनुपम खेर भी अपेक्षित सहयोग देते हैं.
क्यों देखें- कॉमेडी के उम्दा कलाकारों को एक साथ देखना चाहें तो.
क्यों न देखें- किसी बेहतरीन सिचुएशनल कॉमेडी के दीदार की इच्छा रखते हों तो रहने ही दें.
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सिचुएशनल कॉमेडी की सबसे बड़ी जरूरत होती है एक मजबूत स्क्रिप्ट. कहानी में जरा सी चुक हुई नहीं कि जी तोड़ मेहनत के बावजूद अभिनय के तमाम योद्धा मोर्चे पर धराशायी हो जाते हैं. कमोबेश यही स्थिति अभिनय के सात महारथियों की हुई फिल्म साच उचक्के में. निर्देशक संजीव शर्मा ने पुरानी दिल्ली की गलियों और गालियों को तो परदे पर खूबसूरती से तराशा, पर कहानी की बूनावट में कमजोर पड़ गये. उनकी इस कमजोरी को मनोज बाजपेयी, केके मेनन व विजय राज जैसे अभिनेताओं ने कॉमेडी के उम्दा स्तर से पाटने की भरपूर क ोशिश की, पर वे सब मिलकर भी इसे उत्कृष्टता की श्रेणी में नहीं ला सके. पर ऐसा नहीं कि फिल्म में देखने लायक कुछ भी नहीं है. पुरानी दिल्ली की तंग गलियां, वहां रचे-बचे निम्नवर्गीय परिवार की जिंदगियां और उन अभाव की गलियों में गुम आंखों में क ामयाबी के बुनते ख्वाब. संजीव की फिल्म उस परिवेश की सैर कराती है जहां बरसों से फिल्मकार जाना भूल चुके थे. और यही फिल्म की खासियत सी बन जाती है.
कहानी पुरानी दिल्ली के सात उचक्कों की है जो छोटे-मोटे अपराध कर के जिंदगी चला रहे होते हैं. उनकी ख्वाहिशें रिहाइशी और मौज-मस्ती भरी लाइफ से ज्यादा नहीं है. पप्पी(मनोज बाजपेयी) उचक्कों के गैंग का लीडर है. समस्या तब शुरू होती है जब पप्पी को सोना(अदिति शर्मा) से प्यार हो जाता है. सोना की मां के सामने वह खुद को एक रसूखदार के रूप में पेश करता है. और फिर खुद को अमीर दिखाने के चक्कर में वो एक बड़ा प्लान करता है. सब मिलकर पुरानी हवेली के दीवान साहब(अनुपम खेर) का खजाना लूटने का प्लान करते हैं. इस कोशिश में उनसे कई गलतियां होती हैं. और उन गलतियों को छुपाने में वो और गलतियां करते जाते हैं. खजाना लूटने के उनके प्लान में बार-बार उनका सामना इंस्पेक्टर तेजपाल (केके मेनन)से होता है. अपनी-अपनी जरूरतें पूरी करने के ख्याल से इस प्लान में जूड़ें इन उचक्कों की जर्नी उन्हें किस मोड़ पर ले जाती है इसका मुजायरा आप थियेटर में करें तो बेहतर होगा.
पहली बार फु ल क ॉमिकल किरदार निभा रहे मनोज यहां भी अपने पूरे रंग में दिखते हैं. क ॉमिकल टाइमिंग के महारथी माने जाने वाले विजय राज और केके मेनन के साथ के दृश्यों में मनोज और निखर जाते हैं. सहकलाकारों में अदिति शर्मा, अन्नु कपुर और अनुपम खेर भी अपेक्षित सहयोग देते हैं.
क्यों देखें- कॉमेडी के उम्दा कलाकारों को एक साथ देखना चाहें तो.
क्यों न देखें- किसी बेहतरीन सिचुएशनल कॉमेडी के दीदार की इच्छा रखते हों तो रहने ही दें.
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