Saturday, October 1, 2016

फिल्म समीक्षा

संघर्षजज्बे और क ामयाबी की कहानी
एम एस धोनीद अनटोल्ड स्टोरी

एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी. फिल्म की कहानी को पूरी तरह जस्टिफाई करता टाइटल. थियेटर में आप धौनी के तीस साल के उस जर्नी का मुजायरा करते हैं, जिसमें संघर्ष है, जोश है, दर्द है, प्रेम है और साथ में है क ामयाबी की वो दास्तान, जिसके जरिये पहली बार आप किसी प्लेइंग स्पोर्सपर्सन की बायोपिक को परदे पर देखेंगे. धौनी के प्रचलित ग्लैमराइज्ड छवि से इतर फिल्म उस क ामयाबी के पीछे की कई सुनी-अनसुनी घटनाओं को खूबसूरती से उकेरती है. निश्चित ही तारीफ के क ाबिल हैं निर्देशक नीरज पांडेय जिन्होंने थ्रिलर वाले अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकल धौनी के जिंदगी के अनसुलङो गिरह को खोलने की सफल कोशिश की. पर उससे कहीं ज्यादा तारीफ के हकदार हैं अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत. धौनी के हाव-भाव, आंतरिक मनोदशा और क्रिकेटीय शैली का हूबहू उकेरने के लिए सुशांत ने जिस संजीदगी से मेहनत की है वो उन्हें उम्दा अभिनेताओं के कतार में निश्चित ही दो कदम आगे ले जाता है. और यकीन मानिए अभिनय की संजीदगी का आलम ये कि थियेटर से बाहर भी कुछ समय तक आप अपने जेहन सुशांत को ही धौनी के रूप में पाने वाले हैं.
धौनी की सफल छवि से हम सब परिचित हैं, पर ये कहानी हमें उस वक्त में खींच कर ले जाती है जहां धौनी को क्रिकेट से ज्यादा फूटबॉल से प्यार था. रांची में वाटर सप्लाई पंप ऑपरेटर का क ाम करने वाले पान सिंह धौनी का बस एक सपना था कि उनका बेटा किसी अच्छे सरकारी नौकरी में चला जाए. पर बेटे का मन पढ़ाई से ज्यादा खेल में लगता था. स्कूल में उसे फूटबॉल के गोलकीपर के रूप में खेलता देख स्पोर्टस टीचर उसे क्रिकेट में विकेट क ीपिंग की सलाह देते हैं. उसे क ीपिंग से ज्यादा बैटिंग पसंद थी, और कुछ ही दिनों में अपने खेल से वो सबको इस बात का अहसास करा देता है. पढ़ाई का एक साधारण सा लड़का स्कूल में क्रिकेट के बदौलत स्टार बन जाता है. उसका खेल देखने के लिए स्कूल में छुट्टी तक कर दी जाती है. उसके हर मैच के बाद दोस्तों की ओर से समोसे की पार्टी होती है. दोस्त संतोष का समोसे की क ीमत पर उसे हेलिकॉप्टर शॉट सिखाना हो, या पंजाबी दूकानदार छोटू भाई द्वारा उसे स्पांसर दिलवाना, दोस्तों का सपोर्ट उसके हौसले को हमेशा बूलंद रखता है. बीच में संघर्षो की परीक्षा उसे कई बार तोड़ती भी है. चाहे वो दिलीप ट्राफी में चयन के बाद भी ना पहुंच पाने का गम हो या दो साल तक खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टीसी के क ाम से उपजा फ्रस्ट्रेशन. पर आखिर में मेहनत और हौसले का ये सफर उसे एक दिन इंडियन क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम तक ले ही जाता है. पर धौनी के जिंदगी की खुलती परतें यहीं नहीं रूकती. हाफ टाइम के पहले कहानी जहां क्रिकेटीय संघर्ष की कहानी कहती है तो इंटरवल के बाद धौनी के लव लाइफ की पलें साझा करती है. क्रिकेटीय जीवन की तरह ही धौनी की लव लाइफ भी उतार-चढ़ाव से भरी रही. नीरज ने उन पलों को जज्बातों के आवरण में खूबसूरती से लपेटा है.
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष तकनीकी इस्तेमाल के साथ क्रिकेट मैच के ओरिजिनल फूटेज और शूट किये गये दृश्यों का मिश्रण है. कई दृश्यों में तो आप सुशांत को धौनी के ओरिजिनल फूटेज के साथ मिला हुआ पाते हैं. निश्चित ही किरदारों के उचित चयन के लिए भी याद रहेगी. चाहे वो पान सिंह बने अनुपम खेर हो , क ोच बने राजेश शर्मा या दोस्त संतोष की भुमिका में क्रांति प्रकाश. प्रेमिका और प}ी के किरदार में दिशा पटानी और कियारा अडवाणी भी सुशांत के किरदार को अपेक्षित मजबूती प्रदान करती हैं. आखिर में संघर्ष, जिद और जज्बे की ये कहानी थियेटर से बाहर आने के बाद भी क ाफी समय तक आपके साथ रहेगी. थियेटर के अंदर कहानी के साथ आपके अंदर उपजा जोश यकीनन आपको चुनौतियों के मुकाबले के लिए प्रेरित करेगा.
क्यो देखें- लिविंग लीजेंड बन चुके धौनी के अनछुए पहलुओं को जानने के साथ-साथ खुद में हौसले का संचार करना हो तो जरूर देखें.


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