Saturday, September 24, 2016

फिल्म समीक्षा

      झिझक की बेड़ियां तोड़ खुशियों की तलाश करती पार्च्ड


पिछले हफ्ते पिंक देखी थी, इस हफ्ते पार्च्ड. दोनों में ही औरतों की जर्नी. एक में दुनिया की भीड़ में अपनी जगह तय करती औरतों की जर्नी, तो दूसरे में मुरझाई-कुम्हलाई अपनी जिंदगी में खुद के अंदर जज्ब अपनी खुशियां तलाशती औरतों की जर्नी. खूशी की बात ये है कि हिंदी सिनेमा अब ऐसी अपारंपरिक कहानियां गढ़ने की हिम्मत दिखाने लगा है. है तो ये भले ही तीन औरतों की कहानी , पर गौर से देखें तो आज हर ओर भीड़ में कई ऐसी महिलाएं दिखेंगी जो पुरूषों की जिंदगी सींचते-सींचते कब खुद ठूंठ बन गयी उन्हें खुद पता नहीं चला. पार्च्ड दैहिक और मानसिक स्तर पर सूख चुकी उन्हीं औरतों द्वारा अपने सूखेपन को सींच खुद को हरा-भरा कर लेने की कहानी है. निर्देशक लीना यादव ने बड़ी ही खूबसूरती से तीन लड़कियों के जरीये भीड़ में गूम उन सारे चेहरों को झिझक और बेड़ियों सरीखी वजर्नाएं तोड़कर खुशियां चुनने की एक राह दिखा दी है.
कहानी रानी(तनिष्ठा चटर्जी), लाजो(राधिका आप्टे) और बिजली(सुरवीन चावला) की है. यात्र में जानकी और गुलाब जैसे सहयात्री भी हैं. रानी कम उम्र में ही शादी के बाद मां बन चुकी है. शादी के साल भर बाद ही उसके पति की मौत हो गयी थी. अपने बेटे को पालने से लेकर उसके शादी तक वो खुद को दुनियादारी की आग में झोंकती रहती है. उसकी जिंदगी में खुशियों के कुछ पल आते हैं तो बस उसके मोबाइल की वजह से. एक अनजानी क ॉल बार-बार उसकी अतृप्त इच्छाओं पर खुशियों की बौछार कर जाती है. लाजो मां नहीं बन पाने की कमजोरी की वजह से पति द्वारा शारीरिक प्रताड़ना की शिकार है. और बिजली, इन सबसे अलग अपनी खुशियां हासिल करने के लिए शरीर का इस्तेमाल करती है. वो गांव के मर्दों की जरूरतें पूरी कर बदले में अपनी चाहत हासिल करती है. गुलाब रानी का बेटा है. जानकी से शादी के बाद भी वो अपनी जरूरतें घर के बाहर ही पूरी करता है. बिजली उन तीनों के अंदर कैद खुशियों के दरवाजे खोलने का क ाम करती है. वो लाजो को मां बनने की खुशी हासिल करने के लिए अपने पति से इतर जाने की राह चुनने को कहती है और रानी अपने बेटे की जकड़न से मुक्त कर जानकी को उसके प्रेमी संग आजाद कर देती है.
लीना की ये फिल्म बौद्धिक स्तर पर कईयों को नागवार गुजरेगी. पर औरतों की वही जकड़न और घुटन जब वो खुद के अंदर जज्ब कर देखेंगे तो वो लीना के इस यात्रा से सहमत हुए बिना नहीं रह सकेंगे. लीना की इस यात्रा को उनकी अभिनेत्रियों का भरपूर साथ मिला है. राधिका ने कहानी की जरूरत के लिहाज से खुद को आवश्यक विस्तार दे दिया है. उनकी तोड़ी लकीरों ने लीना का क ाम निश्चित ही आसान कर दिया ह ोगा. तनिष्ठा के भाव संप्रेशनऔर सुरवीन की स्वछंदता भी कहानी को खुलकर खिलने का मौका देती है. पर आखिर में ये बात बतानी जरूरी हो जाती है कि फिल्म केवल व्यस्कों के लिए है सो थियेटर के रूख में परिपक्वता जरूरी है.
क्यों देखें- वषों से चली आ रही ट्रेडिशनल माइंडसेट बदलने के लिए ऐसी कहानियां निहायत जरूरी हैं.
क्यों न देखें- बेशक फिल्म नाबालिकों के लिए नहीं है.


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