Sunday, November 27, 2016

फिल्म समीक्षा

                    एक्शन के शौकीनों को भाएगी फ ोर्स 2

पहली फ ोर्स से तुलना छोड़ दें तो फ ोर्स 2 का साथ आपको निश्चित ही भायेगा. पहली फिल्म में मुंबइ पुलिस एसीपी यशवर्धन और उसके काम के तौर-तरीकों से वाकिफ हो चुके दर्शकों के लिए ये जिज्ञासा बनी थी कि नयी फिल्म में नया क्या होगा. और यकीनन फिल्म उन दर्शकों की जिज्ञासा को खूबसूरती से शांत करने में सफल होती है. निर्देशक अभिनय देव ने फ ोर्स 2 के जरीये देश के लिए काम कर रहे उन रॉ एंजेंट्स की कहानी कही है जो पूरी उम्र तो देश सेवा में लगा देते हैं, पर पकड़े जाने पर वही देश उनसे मुंह मोड़ लेता है. उसके इंडियन होने पर ही सवालिया निशान लगा देता है और कभी-कभी तो उसे गद्दार तक बना दिया जाता है.
फ ोर्स 2 की कहानी पिछली फिल्म के खात्में के साथ ही शुरू होती है. माया(जेनेलिया देशमुख) की मौत के बाद एoीपी यशवर्धन उसकी यादों और अपने काम के सहारे जिंदगी गुजार रहा होता है. तभी खबर आती है कि चीन में काम कर रहे तीन रॉ के एंजेंट्स की हत्या हो जाती है. उनकी मौत पर भारत सरकार उन्हें रॉ का एजेंट मानने से इनकार कर देती है. मरने वालों में एक यश का दोस्त हरीश भी होता है जो मरने से पहले वो यश के लिए कुछ क्लू छोड़कर जाता है. उसके दिये सुराग से यश को पता चलता है कि ये हत्याएं करवाने वाला भी एक रॉ एजेंट है जो बुडापेस्ट अम्बेसी में काम करता है. यश के पिछले रिकार्ड को देखते हुए उसे इस केस की तहकीकात करने बुडापेस्ट भेजा जाता है जहां उसके साथ रॉ की एजेंट केके(सोनाक्षी सिन्हा) भी जाती है. वहां पहुंचकर दोनों साजिश के मुख्य आरोपी शिव शर्मा (ताहिर राज भसीन) तक भी पहुंच जाते हैं. पर इसके साथ ही एक के बाद एक रॉ एजेंट्स की हत्या शुरू हो जाती है. केके इस केस को रॉ के तरीके से हैंडल करती है जबकि यश की सोच मुंबई पुलिस की तरह चलती है. केस की तह तक जाते यश के हाथ एक दिन ऐसा सुराग लगता है जो इस केस की पूरी दिशा ही बदल देता है.
बीजिंग, संघाई और बुडापेस्ट के नयनाभिराम लोके शंस के साथ चलती कहानी जॉन की चुस्ती-फुर्ती की वजह से भी मोहती है. एक्शन और चेजिंग सींस में जॉन अब विश्वसनीय हो चले है, कमी रह जाती है तो बस उनके फेसियल एक्सप्रेशंस की. शायद यही वजह रही कि निर्देशक ने जॉन के क्लोज शार्ट्स से भरसक बचने का प्रयास किया है. अकीरा के बाद एक बार फिर सोनाक्षी की मेहनत सराहनीय है. ताहिर के अलावे छोटी भुमिकाओं में नरेन्द्र झा और आदिल हुसैन भी फबते हैं. गानों में क ाटे नहीं कटती का यंगर वजर्न लुभाता तो है पर बीजिंग के क्लब में हिंदी गाने बजना समझ से परे है.
क्यों देखें- अगर आप जॉन के तेजतर्रार एक्शन और चपलता के दीवाने हैं तो बेशक फिल्म आपके लिए है.
क्यों न देखें- पिछली फिल्म से तुलना थोड़ी निराश करेगी.



No comments: