कहीं
रहें,
माटी
से जुड़े रहें
प्रतिभाओं
की धरती बिहार से यूं तो कई
सितारे उभरे,
पर
क ामयाबी के बाद भी जमीन से
जुड़े रहने की ललक कुछेक में
ही दिखी.
एमएस
धौनी जैसी फिल्म में धौनी के
करीबी दोस्त संतोष का किरदार
निभाकर चर्चा में आये क्रांति
प्रकाश झा की दास्तां भी कुछ
ऐसी ही है.
हाल
में सोशल मीडिया पर वायरल हो
रहे स्वर क ोकिला शारदा सिन्हा
के छठ अलबम में मुख्य किरदार
निभाकर क्रांति ने उसी जुड़ाव
का परिचय दिया.
चंद
पलों के मुलाकात में क्रांति
के अंदर बिहारी संस्कृति को
जिंदा रखने की जीवटता ने बता
दिया कि क ामयाबी का पहला मंत्र
जड़ों से जुड़ाव ही है.
बेगुसराय
के रूदौली गांव के रहने वाले
क्रांति प्रकाश झा की पढ़ाई
पटना के स्कूल से हुई.
मन
में डॉक्टर बनने का सपना पाले
क्रांति सेंट एमजी हाईस्कूल
के बाद आगे की पढ़ाई के लिए
दिल्ली चले गये.
हिंदू
क ॉलेज से हिस्ट्री आनर्स
किया.
आम
बिहारियों की तरह एक बारगी
मन में आईपीएस बनने का ख्याल
भी आया.
पर
नियति को तो जैसे कुछ और ही
मंजूर था.
मॉडलिंग
के रास्ते शुरू हुआ सफर उन्हें
हिंदी सिनेमा के रूपहले परदे
तक ले गया.
फिर
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
फिल्म मिथिला मखान,
देसवा
व एमएस धौनी जैसी फिल्मों ने
नयी पहचान दी.
छठ
पूजा में घाट छेंकना आज भी याद
आता है-
छठ
की बात चलने पर क्रांति अचानक
बचपन की यादों में खो जाते
हैं.
बताते
हैं कि घाट छेंकने के लिए जल्दी
जाने की होड़ रहती थी.
रंग-बिरंगे
कपड़े व पटाखे देख आज भी मन
मचल उठता है.
मजा
करने के लिए कभी-कभी
तो हमलोग जान बुझकर रॉकेट ऊपर
छोड़ने के बजाय आस-पास
के खेत-खलिहानों
में छोड़ देते थे.
पहले
छठ में पूरे परिवार और रिश्तेदारों
के जमावड़े काफी होते थे.
अब
तो यूट्यूब और सोशल साइट्स
पर ही घाटों को देखकर मन को
समझाना पड़ता है.
पर
इस बार आठ-दस
सालों बाद पटना का छठ करीब से
देख पाऊंगा.
संतोष
लाल का किरदार रहा चुनौती भरा-
एमएसधौनी
में संतोष का किरदार निभाने
की सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि
संतोष अब इस दुनिया में नहीं
हैं.
उनके
किरदार को आत्मसात करने के
लिए काफी एकाग्रता की जरूरत
पड़ी.
नीरज
सर (नीरज
पांडे)
और
धौनी से मिले रिफरेंस ने क ाम
थोड़ा आसान किया.
अंदर
चुनौती ये थी कि किरदार भले
ही छोटा है पर इम्पैक्ट कैसे
बड़ा लाया जाए .
पर
शुक्रिया दर्शकों का जिन्होंने
मेहनत को सराहते हुए मेरे
किरदार को एक्सेप्ट किया.
आमिर
खान के बांदनी जैकेट ने हीरोइज्म
की ललक जगायी-
आज
भी याद है जब फिल्म हम हैं राही
प्यार के फिल्म देखने के बाद
मै अपने भईया के साथ पटना कि
सड़कों पर बांदनी जैकेट की
खोज में भटक रहा था.
घूंघट
की आड़ गाने में आमिर के पहने
इस जैकेट ने जैसे मुझमें
हीरोइज्म का
खुमार
भर दिया था.
जैसे-तैसे
जैकेट का जुगाड़ कर उसे पहन
घर गया इस खुमारी में कि घर
में सब खूश होंगे.
पर
घर पहुंचते मां का जो जोरदार
तमाचा पड़ा कि हीरो बनने चले
हो,
पढ़ाई
करो.
पर
मन के किसी क ोने में अभिनय के
क ीड़े ने घर तो बना ही लिया
था.
राजेश
कुमार के बुलावे पर मुंबई गये-
यूपीएससी
का एग्जाम कंपीट नहीं कर पाने
की वजह से क्रांति प्रकाश
थोड़ा अपसेट रहने लगे थे.
ऐसे
में टेलीविजन एक्टर राजेश
कुमार ने कहा कि एग्जाम तो अब
अगले साल होंगे,
ऐसे
में एक महीने के लिए मुंबई आ
जाओ,
मन
बहल जाएगा.
क्रांति
के अनुसार उनके बुलावे पर
मुंबई गया तो वहां के ग्लैमर
ने मुङो एक नयी दिशा दे दी.
फिर
तो अभिनय का ही होकर रह गया.
मेरे
जीवन में मेरे बड़े भाई के
अलावा राजेश कुमार का बड़ा
योगदान है.
जब
500
रुपये
मिला पहला मेहनताना-
मॉडलिंग
से शुरूआत करने वाले क्रांति
बताते हैं कि मुंबई में पहला
क ाम एक सजिर्कल इंस्ट्रमेंट
के ऐड का मिला.
मन
में काफी खूशी थी कि पहली बार
टीवी पर दिखूंगा.
पर
पूरे ऐड के दौरान मुंह पर
डॉक्टर्स की तरह मास्क ही बंधा
रहा.
पल
भर में सारी हीरोगीरी क ाफूर
हो गयी और मै हकीकत की धरातल
पर आ खड़ा हुआ.
पर
उस ऐड के मेहनताने में मिले
500
रूपये
की खूशी आज भी भूलाये नहीं
भूलती.
भोजपूरी
सिनेमा का हश्र दूखी करता है-
क्रांति
भोजपूरी सिनेमा की बात चलने
पर थोड़ा विचलित हो जाते हैं.
कहते
हैं आज के भोजपूरी सिनेमा ने
ही बाहर में बिहारियों की
निगेटिव छवि बना दी है.
कितना
अच्छा होता हम चलताऊ चीजें
दिखाने के बजाय अपनी फिल्मों
के जरीये बिहार की संस्कृति
व भाषा को आगे बढ़ाने का क ाम
करते.
पर
यहां के लोगों में अपनी
सभ्यता-संस्कृति
के प्रति उदासीनता ही इसकी
राह में सबसे बड़ा रोड़ा है.
कुछ
उदासीनता सरकारी स्तर पर भी
है.
हरेक
को अपनी जिम्मेदारी समझनी
होगी तब जाके चीजें बदलेंगी.
और
मुङो उम्मीद है कि भले थोड़ा
वक्त लगे,
पर
चीजें बदलेंगी.
मुंबई
का सपना पाले यूथ्स के लिए
सुझाव-
सभी
बिहारियों को छठ की शुभकामनाएं
देते हुए व छठ अलबम की सफलता
से अभिभूत क्रांति सिनेमा की
दुनिया में जाने का ख्वाब रखने
वालों के लिए सबसे पहला सबक
यही देते हैं कि कुछ भी करो पर
अपनी जड़ों को कभी मत छोड़ो.
माता-पिता
के साथ अपनी माटी का सम्मान
और अपनी मातृभाषा के लिए
कृतज्ञता ही सफलता की राह आसान
करेगी.
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