खौफ और प्यार की कहानी डोंगरी का राजा
भले
रामगोपाल वर्मा आजकल लाइमलाइट
से बाहर हों पर एक वक्त उन्होंने
सिनेमा इंडस्ट्री को ऐसी राह
दिखा दी थी जिस ओर आजतक गाहे-बगाहे
निर्माता-निर्देशक
खींचे चले जाते हैं.
अंडरवर्ल्ड
और उसके आसपास की दुनिया.
ये
अलग बात है कि कम ही निर्देशक
उनकी तरह परदे पर इस दुनिया
के साथ न्याय कर पाये.
हादी
अली अबरार ने डोंगरी की गलियों
में पैर पसारे अंडरवर्ल्ड और
उसमें पनपते एक प्रेम कहानी
को केंद्र में रखकर एक बार फिर
वही कोशिश की है.
डोंगरी
मुंबई की एक बस्ती है जहां
अस्सी-नब्बे
के दशक में हाजी मस्तान व करीम
लाला जैसे कई माफिया सरगनाओं
का राज चलता था.
डोंगरी
का राजा उसी अंडरवर्ल्ड के
बैकड्रॉप पर बनी एक प्रेमकथा
है.
मंसूर
अली (रोनित
राय)
डोंगरी
का मशहुर डॉन है.
राजा
(गशमीर
महाजन)उसका
शार्प शुटर है जिसे मंसूर और
उसकी प}ी
(अश्विनी
कलसेकर)
अपने
बेटे की तरह मानते है.
प्रतिद्वंद्वी
गैंग के साथ-साथ
पुलिस अफसर सिद्धांत(अस्मित
पटेल)
भी
राजा को खत्म करना चाहता है.
पर
तमाम क ोशिशों के बाद भी उसे
मंसूर और राजा के खिलाफ क ोई
सबूत नहीं मिलता.
एक
दिन अचानक राजा की नजर श्रुति
(रिचा
सिन्हा)
पर
पड़ती है.
और
वो पहली नजर में ही उसे दिल दे
बैठता है.
इस
बीच सिद्धांत को एक सुराग हाथ
लगता है.
वो
राजा के ही एक विश्वस्थ की मदद
से उसके खिलाफ जाल बुनता है.
अब
राजा के सामने एक ओर बदला और
बचाव है तो दूसरी ओर उसका प्यार.
ऐसी
परिस्थितियों के बीच एक खूबसूरत
प्रेमकथा की बूनावट भी जोखिम
भरा क ाम रहता है,
और
अबरार इसी मोर्चे पर ढीले पड़
जाते हैं.
दर्शक
राम गोपाल वर्मा वाली दुनिया
की तलाश में बेचैन रह जाते हैं
और फिल्म किसी साउथ इंडियन
फिल्म की तरह आगे निकल जाती
है.
रोनित
राय पिछले कुछ सालों में इस
तरह की भुमिका के आदी हो चले
हैं.
बॉस
और गुड्डू रंगीला वाला सफर
यहां भी जारी रहता है.
पहली
फिल्म होने के बावजूद गशमीर
और रिचा की मेहनत झलकती है.
पर
वाहवाही लूट ले जाती हैं अश्विनी
कलसेकर.
भावनात्मक
दृश्यों में अश्विनी प्रभावित
करती हैं.
कुल
मिलाकर डोंगरी का राजा अंडरवर्ल्ड
बैकड्रॉप पर बनी एक औसत फिल्म
बनकर रह जाती है जो दर्शकों
पर शायद ही प्रभाव छोड़ पाये.
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