बार
बार नहीं एक बार ही क ाफी है
एक
बात आपको पहले ही बता दूं अगर
आप सिद्धार्थ-कैटरीना
के दीवाने हैं और किसी उम्दा
फिल्म की उम्मीद में बार-बार
देखो देखने जा रहे हैं तो संभल
जाइए,
फिल्म
बड़े प्यार से आपकी जेब साफ
कर देगी और आखिर में आप खुद को
ठगा सा लेकर थियेटर के बाहर
पाएंगे.
ट्रेलर
से क ाफी उम्मीद जगाती बड़े
बैनर और बड़े नामों से सजी ये
फिल्म थियेटर से निकलते वक्त
बिलकुल खोदा पहाड़ निकली
चुहिया वाली कहावत साबित होती
है.
फिल्म
की कहानी (माफ
क ीजिएगा कहानी बोलनी पड़ रही
है)
ही
इसकी सबसे कमजोर कड़ी है.
और
रही सही कसर इसकी उलझाऊ नाटकीयता
और कैटरीना के बार्बी टाइप
अभिनय ने पूरी कर दी.
पूरी
फिल्म में उपजे सिरदर्द में
अगर कोई राहत का बाम देता है
तो वो हैं दिल्ली,
थाइलैंड
और इंगलैंड के नयनाभिराम
लोकेशंस और सिद्धार्थ मल्होत्र
का अभिनय.
जय
वर्मा (सिद्धार्थ
मल्होत्र)
और
दीया(कैटरीना
कैफ)
बचपन
के दोस्त हैं.
वक्त
और उम्र बढ़ने के साथ-साथ
दोनों में प्यार बढ़ता है.
मैथेमैटिक्स
का स्टूडेंट जय क ाफी एंबिसस
है और वो लाइफ के हर क ाम कैलकुलेशन
के साथ करता है.
जब
दीया जय को शादी के लिए प्रपोज
करती है उस वक्त वो कैंब्रिज
यूनिवर्सिटी से आए ऑफर की वजह
से इस शादी से इनकार कर देता
है.
दीया
को हर्ट करने के बाद उस रात वो
टेंशन में क ाफी शराब पी लेता
है,
पर
जब सूबह उसकी नींद खुलती है
तो वो खुद को दीया के साथ थाइलैंड
में हनीमून मनाता हुआ पाता
है.
वो
समझ नहीं पाता उसके साथ क्या
हो रहा है.
फिर
हर रात की नींद के बाद वो अपनी
लाइफ में दस या पंद्रह साल आगे
चला जाता है.
जहां
वो अपनी व दीया के लाइफ की कई
सारी घटनाओं को जीता है.
पर
जय के साथ आखिर ये क्यूं हो
रहा और इसका अंत क्या है?
यही
फिल्म का क्लाइमैक्स है.
कहानी
क ागजी स्तर पर जितनी उत्सुकता
पैदा करती है परदे पर उतनी ही
बोरियत देती है.
पहले
हाफ में शुरूआत के साथ बनी
उत्सुकता इंटरवल आते-आते
बार-बार
थियेटर छोड़ने को उकसाने लगती
है.
बस
खाली जेब का ख्याल आते ही पांव
रूक जाते हैं.
गानों
की बात करें तो थोड़ा सुकून
मिलता है.
कुल
मिलाकर फिल्म को एक बार पचा
पाएं तो आपकी क ाबिलियत,
बार-बार
देखना अपच के अलावा कुछ नहीं
देगा.
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