Wednesday, September 21, 2016

फिल्म समीक्षा: राज र ीबूट

     नये पैकेट में पूराने सामान की तरह है राज र ीबूट

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विक्रम भट्ट ने खुद को एक ऐसे खांचे में ढाल लिया है कि दर्शक अब उनसे कुछ अलग की उम्मीद भी नहीं करते. और वो भी दर्शकों को एक अंतराल के बाद अपनी उसी दुनिया में ले जाते हैं, जहां कुछ छिपे राज होते हैं, बदले की आग होती है और परालौकिक शक्तियों का बसेरा होता है. उन्होंने ऐसे मायाजाल रचने में खुद को पारंगत कर लिया है पर अफसोस एकरसता के भंवर से खुद को बचा नहीं पाये.  कुछ नया नहीं होने की वजह से सबकुछ देखा-देखा सा लगता है. थ्रिल के स्तर पर भी दिमाग कुछ और, कुछ और की मांग करता रह जाता है और फिल्म खत्म हो जाती है. पर ऐसा नहीं कि फिल्म में देखे जाने लायक कुछ भी नहीं. कहानी, सस्पेंस, फिल्मांकन और नयनाभिराम लोकेशंस के लिए फिल्म एक बार तो देखी ही जा सकती है.
सायना(कृति खरबंदा) और रेहान (गौरव अरोड़ा) रोमानिया में एक-दूसरे से मिलते हैं. दोनों में प्यार होता है और दोनों शादी करके इंडिया में सेटल हो जाते हैं. कुछ सालों बाद रेहान को फिर से र ोमानिया की एक अच्छी कंपनी में जॉब ऑफर होता है. वो वापस वहां नहीं जाना चाहता पर सायना की जिद की वजह से प्रपोजल एक्सेप्ट कर लेता है. वहां उन्हें रहने को जो घर मिलता है उसके बारे में ये धारणा थी कि वो हान्टेड है. वहां शिफ्ट होने के दिन से ही सायना के साथ अजीब-अजीब घटनाएं होने लगती हैं. वो रेहान को ये बताती है पर वो उसपर विश्वास नहीं करता. फिर सायना की मुलाकात आदित्य(इमरान हाशमी) से होती है. आदित्य उसका पूर्व प्रेमी था पर उसकी हरकतों से तंग आकर सायना ने उसे छोड़ दिया था. वो सायना को बताता है कि उसके साथ होने वाली हर घटना को वो सपने में पहले ही देख लेता है. सायना उसका विश्वास नहीं करती पर पर वो उसके साथ घटने वाली हर घटना के बारे में उसे बताता है. आदित्य उसकी मदद करना चाहता है. वो बताता है कि रेहान ने उससे एक राज छुपाया है और वो ये कि रोमानिया छोड़ने से पहले उसके हाथों किसी का खून हुआ था. पर इससे पहले कि वो रेहान से ये सब पुछ पाती एक बूरी आत्मा उसके शरीर पर कब्जा कर लेती है. उसे बचाने के लिए रेहान तांत्रिक का सहारा लेता है. फिर उन सबके सामने खुलता है ऐसा राज जिसकी वजह से ये सारी घटनाएं हो रही हैं.
भट्ट कैंप के चहेते बन चुके इमरान हाशमी अभिनय के स्तर पर सालों से एक ही परिधि के चारो ओर घुमते नजर आते हैं. ऐसा लगता है उन्होंने भी अब अपनी प्रचलित सीरियल किसर की भुमिका से बाहर आने की जद्दोजहद छोड़ दी है. गौरव अरोड़ा व कृति खरबंदा ने अपने हिस्से की भुमिका सहजता के साथ निभाया है. गाने सूनने योग्य तो हैं पर देर तक असर नहीं छोड़ पाते. हां रोमानिया के प्राकृतिक दृश्य जरूर एक ठंडक का अहसास देते हैं. कुल मिलाकर टाइम पास के लिए फिल्म एक बार देखी जा सकती है.
      

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