Saturday, September 10, 2016

फिल्म समीक्षा: फ्रीकी अली


कमजोर फिल्म को नवाज के क ांधे का सहारा
फिल्म इंडस्ट्री की ये विडंबना है कि यहां लोग क ामयाबी की सीढ़ी चढ़ते स्टार की इमेज भूनाने में लग जाते हैं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी निर्विवादित रूप से आज के दौर के पसंदीदा स्टार हैं. अभिनय में उनकी स्वीकार्यता हर वर्ग में तेजी से बढ़ी है. ऐसे में सोहेल खान की फ्रीकी अली जैसी फिल्म उन्हें एक कदम पीछे ही खींचती है. नवाज ने सहज और आकर्षक अभिनय के दम पर फिल्म को उठाने की भरसक क ोशिश की है, पर सोहैल की कमजोर कहानी उनकी इस क ोशिश में बार-बार खलल पैदा करती है. सोहैल ने नवाज की असल जिंदगी से रिफरेंस लेते हुए फिल्म की कहानी बूनी जिसके केंद्र में गोल्फ रखा. पर अत्यधिक फिल्मी नाटकीयता और बाकी कलाकारों के उदासीन अभिनय की वजह से नवाज का प्रभाव भी कम हो जाता है.
कहानी लावारिस लड़के अली (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की है जिसे एक हिंदू औरत (सीमा विश्वास)अपने बच्चे की तरह पालती है. बचपन से गलियों में चड्डियों की दुकान लगाने वाला अली क्रिकेट में क ाफी हुनरमंद है. पर पैसे कमाने की लालसा में वो मकसूद(अरबाज खान) के साथ मिल हफ्ता वसूली का धंधा करता है. एक दिन एक गोल्फर से पैसा वसूली करते हुए उसे गोल्फ खेलने की चुनौती मिलती है. उसके ये हुनर उसी के गांव के एक व्यक्ति किशनलाल (आसिफ बसरा)की नजर में आ जाता है. वो उसे अपनी जिंदगी सुधारने के लिए गोल्फ की ट्रेनिंग लेने को कहता है. इसमें मकसूद भी उसकी मदद करता है. टूर्नामेंट के दौरान उसका सामना गोल्फ के दिग्गज पीटर(जस अरोड़ा) से होता है. पर हुनर और मेहनत के दम पर गली का लड़का आखिर में गोल्फ चैंपियन बनता है.
सोहैल निर्देशन के स्तर पर फिल्म को एक साथ नहीं समेट पाए हैं. टूकड़ों-टूकड़ों में बंटी सी फिल्म कई मौकों पर उनके हाथ से छूटती नजर आती है. क ॉमिक सींस में भी आवश्यक पंच की कमी की वजह से दृश्य हल्के हो गये हैं. नवाज को फिल्म में किसी का आवश्यक सहयोग मिल पाता है तो वो हैं सीमा विश्वास. एमी जैक्शन और बाकी किरदार भी बस भरपायी के लिए गढ़े गए लगते हैं. गानों के बोल शायद ही याद रह पाएं पर संगीत थियेटर में सूनने लायक है. तो अगर ये फिल्म देखने की कहीं कोई गुंजाइश दिखती है तो वो बस नवाज के हिस्से जाता है.
क्यों देखें- चेहरे पर मुस्कान लाने वाली नवाज की नैसर्गिक अभिनय की खातिर एक बार देख सकते हैं.
क्यों न देखें- उम्दा कहानी से सजी किसी सशक्त फिल्म की उम्मीद में हों तो.


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