कंपलीट पैकेज है सीक्रेट सुपरस्टार
आजकल हिंदी सिनेमा का ट्रीटमेंट ऐसा हो चला है कि पूरी फैमिली के साथ थियेटर का रूख करना दूर की क8ौड़ी हो गयी है. ऐसे में कोई ये कहे कि फलां फिल्म पूरी फैमिली के साथ देखें तो मजा दोगूना हो जाएगा, बेमानी सा लगता है. पर बात अगर सीक्रेट सुपरस्टार की हो तो ये लाइन शत्-प्रतिशत सही बैठती है. जायरा वसीम और आमिर खान अभिनित सीक्रे ट सुपरस्टार आज के दौर में बनी ऐसी ही फिल्म है जिसे आप अकेले देखें तो वाकई मजा आयेगा पर अगर फैमिली के साथ देखें तो वही मजा दोगुना हो जाएगा. यहां स्टारकास्ट की बात करते वक्त आमिर से पहले जायरा का नाम लेना भी इसलिए यथोचित है कि फिल्म की असल स्टार वही है जिसे आमिर ने अपने क ांधे का सहारा भर दिया है. सीकेट्र सुपरस्टार हर उस यंगस्टर के लिए है जो कुछ कर गृुजरने का ख्वाब देखते हैं, पर रास्ते की बाधाओं से घबड़ाकर उस ख्वाब का गला घोंट देते हैं, यह फिल्म हर उस पैरेंट्स के लिए भी है जो अपने बच्चों के उन ख्वाबों को अपने अहं की भेंट चढ़ा देते हैं और यह फिल्म है हर उस समाज के लिए जहां आज भी लड़कियों का मतलब किसी और घर की बहू बना देने की जिम्मेदारी भी तक है.
बड़ौदा की इंसिया मलिक (जायरा वसीम) है तो स्कूल गर्ल पर उसके ख्वाब उसकी फैमिली के कद के हिसाब से काफी बड़े हैं. ख्वाब एक क ामयाब सिंगर बनने का, खुद की पहचान तय करने का. जिसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा उसके पिता(राज अजरुन) की रूढ़िवादी सोच है. सपोर्ट में मां नजमा (मेहर विज) है पर वो भी पिता की प्रताड़ना की बेड़ियों में जकड़ी हुई है. इंसिया की लड़ाई दो मोचरे पर है. खुद के सपनों को साकार करने के साथ ही वो मां को भी पिता के साये से मुक्त करना चाहती है. ऐसे में वो खुद को बुर्के में लपेट छद्म नाम से अपना एक सिंगिंग वीडियो तैयार करती है और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर देती है. कुछ समय में ही उसका वीडियो वायरल हो जाता है जिसपर नजर पड़ती है स्ट्रगलर म्यूजिक डायरेक्टर शक्ति कुमार (आमिर खान) की. वो किसी तरह से उसकी तलाश कर उसे मुंबई लाना चाहता है. अब इंसिया के साथ उसके सपनों की दुनिया है, और चुनौतियों से लड़कर वहां तक पहुंचने का जज्बा भी.
दंगल के बादा इंशिया के किरदार में जायरा को देखना दंगल से दो कदम आगे निकल जाने वाला अहसास देता है. इमोशनल के साथ-साथ जोश भरते दृश्यों में भी जायरा के चेहरे का भाव संप्रेशन और बॉडी लैंगवेज उसे कम उम्र में ही उम्दा अभिनेत्रियों की श्रेणी में ला खड़ा करता है. रही बात आमिर की तो उनकी अभिनय क्षमता और किरदार की डिटेलिंग पर की गयी उनकी मेहनत परदे पर ही काफी कुछ कह देती है. हर बार एक नये प्रयोग के साथ परदे पर आते आमिर ने इस बार इमोशनल कहानी वाली रेसिपी में जो ह्यूमर का तड़का लगाया है वो लाजवाब है. सहकलाकारों में राज अजरुन, मेहर के साथ-साथ बाल कलाकार तीर्थ शर्मा भी कमाल कर गये हैं. तो अगर आप आमिर की फिल्म होने के साथ-साथ सचमुच एक इंस्पायरिंग फैमिली फिल्म देखने के इच्छुक हों तो एक बार थियेटर का रूख जरूर करें.
कहानी गोल, मस्ती मालामाल
अगर आपने गोलमाल सीरिज की पिछली फिल्में देखी हैं तो ठीक, नहीं देखी हैं तो और भी ठीक. गोलमाल अगेन देखने के लिए ऐसी कोई बंदिश है भी नहीं. ठीक वैसे ही अगर आप गोलमाल अगेन को शुरू से देखें तो ठीक, अगर टुकड़ों-टुकड़ों में देखें तो भी बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. इंज्वाय आप उतना ही करेंगे. अमूमन रोहित शेट्टी की हास्य फिल्मों के साथ ऐसा ही होता है. ढेर सारे चूटकूले, वन लाइनर्स, सिचुएशनल क ॉमिक और अनूभवी कलाकारों की भाव-भंगिमाएं पूरे वक्त आपको कुर्सी से उछालते रहेंगे. और गोलमाल अगेन में तो कलाकारों की फौज से वो मजा ओवरडोज में मिल जाता है. बस ख्याल रहे थियेटर में इंट्री के साथ आप दिमाग को स्लीपिंग मोड में डाल दें.कहानी आपके चिरपरिचित गोपाल(अजय देवगन), माधव(अरशद वारसी), लकी(तुषार कपुर), लक्ष्मण 1(श्रेयस तलपड़े) और लक्ष्मण 2(कुणाल खेमु) की है. पांचों दोस्त ऊंटी के सेठ जमनादास अनाथालय में पल-बढ़ कर शहर पहुंचे हैं. अचानक हुए सेठ जमनादास की मौत के बाद उनकी तेरहवीं में शामिल होने पांचो वापस ऊं टी जाते हैं. वहां जाने पर उन्हें पता चलता है बिल्डर वासू रेड्डी(प्रकाश राज) और उसके साथी अनाथालय और उसके आसपास की जमीन हथियाना चाहते हैं. अनाथालय के पास वाली जमीन का मालिक कर्नल चौहान (सचिन केलकर) है जिसकी बेटी की मौत भी कुछ ही दिनों पहले हुई थी. पांचों के वहां पहुंचने पर उनका सामना वहां कब्जा जमाये कुछ भूतों से भी होता है. भूतों से निबटने के लिए वो अन्ना मैथ्यू (तब्बू) का सहारा लेते हैं, जो भूत-प्रेत से बात करने में माहिर है. पांचों किस तरह बिल्डर के साथ-साथ इन भूतों वाली स्थिति का सामना करते हैं इसका मुजायरा अगर आप थियेटर में करें तो बेहतर होगा.
फिल्म अपने लंबाई की वजह से थोड़ी खलती है, जिसे एडिटिंग के जरिये दुरूस्त किया जा सकता था. कुछ गाने भी हास्य के फ्लो में खलल पैदा करते हैं. फिल्म का हॉरर एंगल भी इतना फनी है कि आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगा. अभिनय के लिहाज से हर कलाकार अपनी अलग पहचान का महारथी है. बात चाहे अजय, अरशद, तुषार, श्रेयस और कुणाल की हो या अन्य भुमिकाओं में प्रकाश राज, नील नितिन मुकेश, मुकेश तिवारी, जॉनी लीवर या फिर स्पेशल भूमिका में तब्बू की हो. सबकी क ॉमिक टाइमिंग और डॉयलॉग डिलीवरी का अंदाज मजेदार है. तो उम्दा कहानी वाली शर्त को परे रखकर किरदारों की बेवकुफियों, मस्ती भरी उटपटांग हरकतों और चुटीले संवादों के जरिये एक रिफ्रेशमेंट चाहते हों तो एक बार थियेटर जाने में कोई बुराई नहीं है.