जज्बे
से कामयाबी की राह गढ़ती बिहारी
अभिनेत्री
कहते
हैं प्रतिभा किसी सुविधा या
क्षेत्र की मूंहताज नहीं होती.
छोटे
शहरों की प्रतिभाएं भी देर-सवेर
अपना रास्ता तलाश ही लेती है.
ऐसी
ही प्रतिभा की धनी हैं बिहार
के मोतिहारी जैसी छोटी शहर
में पली बढ़ी टीवी एक्ट्रेस
नेहिका सिंह राजपूत.
बहू
हमारी रजनीकांत,
देवांशी,
उड़ान
और ये हैं मोहब्बते जैसी दर्जनों
सीरियल कर चुकी नेहिका एमबीबीएस
में सेलेक्शन नहीं हो पाने
की वजह से एमबीए की पढ़ाई की.
और
फिर कुछ साल जॉब करने के बाद
नौकरी छोड़ राह पकड़ ली बचपन
के ख्वाब पूरा करने के लिए
सपनों की नगरी मुंबई की.
प्रभात
खबर के गौरव से खास बातचीत में
नेहिका ने अपने इसी सघर्ष और
कामयाबी के सफर को बेबाकी से
साझा किया.
ग्यारह
महीने के सफर में लगभग दर्जनभर
से ज्यादा टीवी शोज,
एक
मराठी फिल्म और राजकुमार
हिरानी की आने वाली संजय दत्त
की बायोपिक फिल्म का हिस्सा.
इस
कामयाबी की बात चलने पर नेहिका
की आवाज में एक स्वाभाविक खनक
उभर आती है.
राइटिंग,
सिंगिंग,
कुकिंग
और एक्टिंग जैसी बहुमुखी
प्रतिभा की धनी नेहिका अपनी
सफलता का श्रेय खुद की मेहनत
और आत्मविश्वास के साथ-साथ
अपने माता-पिता
को भी देती हैं जिनके भरोसे
की वजह से आज वो इस मुकाम पर
हैं.
-सबसे
पहले तो अपने बारे में बताएं?
- मेरे
पुश्तैनी गांव विक्रमगंज
हैं.
पर
अब वहां कोई भी नहीं रहता.
मेरी
पैदाइश पटना की है.
पर
मेरे जन्म के बाद पिताजी का
ट्रांसफर मोतिहारी शहर में
हो गया.
मां-पिताजी
दोनों प्रोफेसर हैं.
मेरी
परवरिश और शिक्षा-दीक्षा
मोतिहारी में ही हुई.
आगे
चलकर मेडिकल की तैयारी के लिए
दिल्ली आ गयी.
मेडिकल
के लिए सेलेक्शन नहीं होने
की वजह से मैंने देहरादून से
एमबीए की पढ़ाई की.
फिर
दिल्ली एचडीएफसी में बतौर
एचआर मैनेजर ज्वाइन किया.
पर
कुछ समय बाद ही मेरे बचपन के
ख्वाब (अभिनय)
ने
मुङो मुंबई की राह पकड़ा दी.
- मेडिकल,
एमबीए
के बाद एक्टिंग की फील्ड में
रुझान.
इसके
पीछे की कहानी क्या है?
- ये
रुझान बचपन से था.
नर्सरी
क्लास से ही मैंने स्टेज डांसिंग
और सिंगिंग में पार्टिसिपेट
करना शुरू कर दिया था.
पर
हमारी ओर अमूमन पैरेंट्स इस
तरह की एक्टिविटीज को लेकर
हमेशा सशंकित रहते हैं वैसे
ही मेरी मां भी थोड़ा इनसिक्योर
फ ील करती थी.
पर
पापा को पूरा भरोसा था.
सो
पढ़ाई के साथ-साथ
ये सब एक्टिविटीज भी जारी रही.
आगे
जाकर जैसे ही मौका लगा मैंने
अपने सपने के पीछे यहां चली
आयी.
- दिल्ली
से मुंबई तक का सफर कैसा रहा?
- दिल्ली
रहने के दौरान ही महुआ चैनल
के रियल्टिी शोज,
मास्टर
शेफ के सीजन थ्री एंड फ ोर और
जी सिने स्टार की खोज में
पार्टिसिपेट किया था.
उसी
दौरान मैं ऑल इंडिया ोगन क
ॉन्टेस्ट की विनर भी रही.
फिर
मुंबई आने के बाद चार महीने
के अंदर ही मुङो एक मराठी फिल्म
मिल गयी.
पर
हिंदी फिल्म मिलने में मुङो
एक साल लग गये.
इस
दौरान संघर्ष जारी रहा और लगभग
दर्जन से ज्यादा टीवी शोज में
छोटे-बड़े
रोल मिलते रहे.
इस
बीच कई शोज के लिए राइटिंग का
काम भी किया.
पर
इतने क ामयाब शोज के बाद आज भी
वो संघर्ष और यात्र अनवरत जारी
है.
- करियर
के लिहाज से टीवी और सिनेमा
में किसे प्राथमिकता देना
चाहेंगी?
- देखिये
मैं सोचकर तो यही आयी थी कि बस
टीवी और एड फिल्में ही क रूंगी.
क्योंकि
सिनेमा के खांचे में मैं खुद
को कहीं न कहीं अनफिट मानती
हूं.
अभिनय
के लिहाज से नहीं,
बल्कि
आज के सिनेमा के समझौते,
अंग
प्रदर्शन और गुम हो जाने वाली
भुमिकाओं के बजाय मैं टीवी
में काम कर घर-घर
देखा जाना पसंद क रूंगी.
हां
अगर फिल्मों में मुङो जहां
कंफर्टटेबिलीटी और बगैर
कंप्रोमाइज वाले किरदार
मिलेंगे तो जरूर क रूंगी.
- अभिनय
के अलावा और क्या पसंद है?
- अभिनय
के अलावा राइटिंग पसंद है.
मैंने
टीवी शोज के अलावा जिमा अवार्ड्स
के लिए राइटिंग की है.
कुकिंग
इंज्वाय करती हूं.
मास्टर
शेफ के दो सीजन में भाग भी लिया
है.
डांसिंग
और म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स
की भी ट्रेनिंग ली है.
स्पोर्स
में भी इंटरेस्ट है.
एक
तरह से कह सकते हैं क्रियेटिविटी
के कई सारे फ ील्ड्स को मैं न
केवल इंज्वाय करती हूं बल्कि
उन्हें प्रोफेशनली एडॉप्ट
भी कर रखा है.
और
इन सब का श्रेय मैं अपने पैरेंट्स
को देती हूं जो खुद इन एक्टिविटीज
में निपूण रहे हैं.
- अभिनय
के संघर्ष में काफी सारी चीजें
पीछे छूट जाती हैं.
क्या
कुछ मिस करती हैं आप?
- सही
कहा आपने कि एज एन एक्टर आपको
कई सारे समझौते करने पड़ते
हैं.
दूर
से यह काफी आकर्षित करता है
पर इस फील्ड में आने के बाद
मुङो भी अपनी पसंद की कई चीजें
छोड़नी पड़ी.
पहले
जहां मैं फास्ट फूड की दीवानी
थी अब हेल्थ कांसस और फिगर
मेंटेनेंस के लिए उन सब चीजों
को भूलना पड़ा.
पहले
कभी एक्सरसाइज की सोच भी नहीं
पाती थी,
वहीं
जिम जाना अब पेशे की मांग हो
गयी है.
आलू-चावल
जो मेरा फेवरेट था,
महीनों
से उसे चखा तक नहीं.
ऐसी
कई सारी चीजें हैं जो काम की
वजह से छोड़नी पड़ी.
- आखिर
में इस फील्ड में संघर्ष करने
वालों को क्या एडवाइस देना
चाहेंगी?
- खुद
को कम मत आंकिए.
क्योंकि
हर इंसान के लिए यहां कोई न
कोई किरदार तय है.
बस
आपमें वो डेडिकेशन होना चाहिए.
इसे
मैं अपनी लिखी चंद लाइनों से
समझाना चाहूंगी.
- थी
मेरी एक कल्पना मैं मुंबई आऊं/
था
मेरा एक सपना कुछ कर दिखाऊं
मैं
मुंबई आयी/
मैंने
शुरू की परफार्मेंस की लड़ाई
कुछ
लोगों ने अपना बनाया/
आसमां
की बुलंदी पर चढ़ाया
कुछ
ऐसे भी मिले जिन्होंने मजाक
उड़ाया
मैंने
भी सोच लिया/
चाहे
जितनी हो खिंचाई/पूरी
करूंगी परफामेर्ंस की लड़ाई/
यही
है मेरी जिंदगी की सच्चई.
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