Sunday, October 29, 2017

फिल्म समीक्षा

जग्गा जासूस के जरिये बचपन की तलाश

कुछ भी लिखने से पहले ही यह बता दूं कि अगर आप दिमागी रूप से अपने बचपन में जाने को तैयार हों तो ही इस फिल्म का रूख करें वरना समझदारी की कसौटी पर कसने से फिल्म आपके दिमाग की ऐसी-तैसी कर देगी. कुछ घंटों के लिए अगर आप अपने बचपन की उसी दुनिया में जा सकते हों जहां लॉजिक से परे कल्पनाओं का राज चलता था, तो फिल्म इंटरटेनिंग है. इसमें परियों सरीखी कथाएं हैं, जासूसी के क ारनामें हैं, दर्द और साजिशों से पर हंसते-मुस्कुराते दुनिया की कल्पना है, बचपन के कहानियों जैसी सीख भी है, बस कुछ नहीं है तो दुनियादारी के कुचक्र में उलझ चुके आपके दिमाग के इस्तेमाल का स्कोप. चार साल के लंबे इंतजार के बाद आयी अनुराग बासू की जग्गा जासूस बच्चों और बच्चे जैसों के लिए एक गिफ्ट सरीखा है जिसे अनुराग ने रणबीर कपुर और शाश्वत चटर्जी जैसे समर्थ अभिनेताओं के संग मिल तैयार किया है. जाहिर तौर पर फिल्म अनुराग को बरफी से एक कदम आगे ले जाती है. 
जासूसी का शौकीन जग्गा (रणबीर कपुर) बचपन में अपने मां-बाप को खो चुका है. उसकी परवरिश उसी अस्पताल में होती है जहां उसका जन्म हुआ था. हकलाहट की वजह से वो हमेशा चुप-चुप रहता है. ऐसे में उसकी जिंदगी में आता है एक शख्स (शाश्वत चटर्जी) आता है जो उसे पिता का प्यार देता है और उसे अपने साथ ले जाता है. वो जग्गा को हकला कर बोलने के बजाय गा कर बातें करने को कहता है. जिससे जग्गा आसानी से अपनी बात लोगों तक पहुंचाने लगता है. कुछ वक्त साथ गुजारने के बाद उसके पिता को किसी काम से वापस जाना पड़ता है. जग्गा को हर बर्थ डे पर गिफ्ट में उसके पिता की ओर से एक वीडियो टेप मिलता था, जिसके इंतजार में वो उस दिन सुबह से पोस्टमैन की राह देखता था. एक बर्थडे जब उसे पिता की ओर से वीडियो नहीं मिलता है तो वह पिता की खोज में निकल पड़ता है. इस तलाश में जग्गा को जर्नलिस्ट श्रुति (कैटरीना कैफ) का साथ मिलता है. पिता की तलाश करते-करते जग्गा को इंडिया में गैर कानूनी हथियारों के सप्लायर का पता चलता है, और वो उसे नाकाम करने की कोशिश में जूट जाता है.
फिल्म निश्चित रूप से पारंपरिक हिंदी सिनेमा की परिपाटी से बिलकुल अलग है. पहले हाफ में यह बार-बार आपके धैर्य की परीक्षा लेगी. पूरी फिल्म में इस्तेमाल गाने की शक्लों में डॉयलाग्स भी कई जगह विचलित करते हैं. पर सेकेंड हाफ में फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है. जग्गा के किरदार में रणबीर ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अभिनय के मामले में यंग जेनेरेशन की वो एक बड़ी उम्मीद हैं. हाल-फिलहाल के दिनों में चेहरे की भाव-भंगिमाओं से अभिनय करने वाला शायद ही कोई अभिनेता फिल्मों में दिखा हो. पिता के किरदार में शाश्वत चटर्जी निखर कर सामने आते हैं. कैटरीना की उपस्थिति हर बार की तरह बार्बी डॉल टाइप ही है. फिल्म के कुछ गाने तो पहले ही चार्ट बस्टर में अपनी जगह बना चुके हैं. कुल मिलाकर फिल्म बच्चों को पसंद आने वाली है. व्यस्कों के लिए मामला दिमाग का है.
क्यों देखें- बचपन में दादी-नानी से सुने किस्सों को एक बार फिर जीना चाहते हों तो.
क्यों न देखें- बड़े बनकर देखेंगे तो थियेटर छोड़ने की नौबत आ जाएगी.


No comments: