खोदा
पहाड़ निकली चुहिया वाली हालत
है बैंक चोर की
बैंक
चोर काफी समय से अटकी वही फिल्म
है जिसमें पहले कपिल शर्मा
को बतौर लीड एक्टर चुना गया
था.
पर
वाई फिल्म के बात नहीं बन पाने
की वजह से बाद में क पिल ने इस
फिल्म में काम करने से इनकार
कर दिया.
2014 में
ही अनाउंस यह फिल्म आखिरकार
अब जाकर रिलीज हो पायी है.
फिल्म
के मुख्य कलाकार रितेश देशमुख
और विवेक ओबेरॉय की जोड़ी इससे
पहले कई एडल्ट कॉमेडी फिल्मों
में साथ नजर आ चुकी है.
पर
बैंक चोर इनकी पिछली फिल्म
से इतर एक सिचुएशनल क ॉमेडी
है.
पिछले
कुछ महीनों में फिल्म के प्रमोशन
के लिए निर्माता ने एक नया
तरीका इजात किया था.
अलग-अलग
हिट फिल्मों के पोस्टर चोरी
कर उनपर इस फिल्म के कलाकारों
का चेहरा चिपका कर इसकी प्रमोशन
की जा रही थी.
जिसने
दर्शकों को इस फिल्म को ले
काफी उत्सूक कर दिया था.
पर
फिल्म देखकर थियेटर से निकलने
के बाद एक बारगी निश्चित ही
यह ख्याल आता है कि इससे अच्छा
मनोरंजन तो फिल्म का पोस्टर
देखकर ही हो रहा था.
घिसे-पिटे
चुटकुलों को संवादो की शक्ल
देकर और ऊल-जलूल
हरकतों के जरिये दर्शकों को
रिझाने की निर्देशक बम्पी की
कोशिश गुदगुदी कम खींज ज्यादा
पैदा करती है.
कहानी
एक मराठा मानुस चंपक (रितेश
देशमुख)
और
उसके दो दोस्तों गेंदा और
गुलाब की है.
पिता
की बाइपास सजर्री के लिए पैसे
का इंतजाम करने के गरज से चंपक
अपने दोस्तों के साथ मिल बैंक
चोरी की योजना बनाता है.
बगैर
किसी अनुभव और तालमेल के तीनों
बैंक के अंदर कई सारी बेवकूफियां
करते हैं और अंदर सारे लोगों
को बंदी बना लेते हैं.
तीनों
की बेवकूफियों की वजह से बाहर
पुलिस,
सीबीआइ
और मीडिया का जमावड़ा लग जाता
है.
हद
तो ये कि आधी फिल्म के बाद जब
सबको यह पता चलता है कि असली
चोर तो ये तीनों हैं ही नहीं,
वह
तो कोई और है.
अब
असली चोरों से वहां फंसे लोगों
को बचाने की जिम्मेदारी सीबीआई
ऑफिसर अमजद खान (विवेक
ओबेरॉय)
और
उन तीन नकली चोरों पर आ जाती
है.
इस
काम में उन्हें मीडिया रिपोर्टर
गायत्री (रिया
चक्रवर्ती)
की
भी मदद मिलती है.
फिल्म
अगर कुछ वजहों से देखे जाने
लायक है तो बस रितेश और उसके
दोस्तों के किरदार मे ंभुवन
अरोड़ा और विक्रम थापा की वजह
से.
रितेश
हांलाकि अब कॉमेडी में इतने
मज चुके हैं कि हर बार उनसे
कुछ नये की अपेक्षा रहती है.
वो
बात यहां मिसिंग है.
इन
तीनों के अलावा साहिल वैद्य
की अदाकारी भी क ाबिले तारीफ
है.
विवेक
ओबेरॉय औसत तक सिमट कर रह गये
हैं.
क8ॉमेडी-थ्रिलर
के नाम पर बनी बैंक चोर की सबसे
बड़ी दुविधा इन्हीं दोनों
विषय को लेकर रही.
अधकचरी
कॉमेडी के साथ पुर्वानुमानित
थ्रिल की वजह से फिल्म औसत से
आगे नहीं जा पाती.
क्यों
देखें-
रितेश
देशमुख और उनके साथियों के
लिए एक बार फिल्म देखी जा सकती
है.
क्यों
न देखें-तर्को
में दिमाग लगाएंगे तो खींज
होगी.
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