साधारण कहानी का उम्दा ट्रीटमेंट मॉम
तर्को पर गौर करेंगे तो फिल्म का अंत एक अलग बहस का मुद्दा हो जाएगा, पर तकोर्ं से परे कहानी दर्शकों को उद्वेलित करने के साथ-साथ रेप और उसके बाद की सिसकती जिंदगी के जरिये आपको भावनात्मक रूप से झकझोरती भी है.
देवकी(श्रीदेवी) और उसकी सौतेली बेटी आर्या के रिश्ते नाजूक दौर में हैं. आज की स्वछंद स्वाभाव वाली लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती आर्या देवकी को कभी अपने मां के रूप में स्वीकार नहीं कर पाती. आर्या उसे खुद और पिता (अदनान सिद्दिकी) के बीच की दीवार भर मानती है. मार्डन ख्यालातों की जंजीर में जकड़ी आर्या एक रात पार्टी में गैंगरेप का शिकार हो जाती है. उसके क्लास का ही लड़का अपने भाई और दोस्तों के साथ मिल रात के आगोश में चलती गाड़ी में इस घटना को अंजाम देता है और फिर उसे नाले में फेंक देता है. आर्या के बयान के बावजूद चारों आरोपी सबूत के अभाव में कानून से बरी हो जाते हैं. बेटी के दर्द से आहत देवकी एक प्राइवेट डिटेक्टिव डीके(नवाजुद्दीन ) की मदद से खुद गुनहगारों से बदला लेती है. उनके रास्ते में क्राइम ब्रांच ऑफिसर फ्रांसिस(अक्षय खन्ना) भी आता है पर आखिर में कहानी का बाकी हिंदी फिल्मों की तरह सुखांत ही होता है.
कहानी काफी हद तक प्रेडिक्टेबल होने की वजह से थोड़ी कमजोर पड़ती है पर भावनाओं और बेहतरीन अभिनय के जरिये कलाकार इसकी नैया पार लगा जाते हैं. कहानी अपने खात्में के साथ-साथ कई सवाल भी पीछे छोड़ जाती है जो आज की समाज में एक बड़े चैलेंज के रूप में मौजूद है. लड़कियों की सुरक्षा, उनकी आजादी का हनन, कानून की कमजोरी और पुरूषवादी मानसिकता जैसे कई ऐसे सवाल हैं जो आज भी समाज में चिंतनीय विषय हैं. दृश्यों के फिल्मांकन और बैकग्राउंड म्यूजिक के जरिये कहानी की संजीदगी को गढ़ने में निर्देशक खासे सफल रहे हैं. अपनी तीन सौंवी फिल्म के साथ श्रीदेवी ने भी कहानी का पूरा भार अपने क ांधे पर उठा लिया और नवाजुद्दीन के साथ मिल उसे मुकम्मल अंत दे दिया है. पिता के किरदार में अदनान सिद्दकी और अक्षय का भी भरपूर सहयोग कहानी को आगे ले जाता है.
क्यों देखें- उम्दा विषय को संजीदे अभिनय के साथ पिरोयी कहानी का मुजायरा करना चाहते हो तो जरूर देखें.
क्यों न देखें- आम मसाला फिल्म की अपेक्षा न रखें.
No comments:
Post a Comment