Sunday, October 29, 2017

फिल्म समीक्षा

टाइमपास से ज्यादा नहीं पोस्टर ब्वायज

अपनी ही सूपरहिट मराठी फिल्म के हिंदी रीमेक के साथ श्रेयस तलपड़े ने बॉलीवूड में अपने निर्देशकीय पारी की शुरुआत की है. नये विषय पर बनी फिल्म के हिंदी रीमेक के लिए श्रेयस ने सन्नी देओल और बॉबी देओल को फिल्म में लिया है. लंबे अरसे के बाद फिल्मों में वापसी कर रहे सन्नी और बॉबी के साथ श्रेयस अभिनय के लिहाज से तो पूरे फ ार्म में दिखे हैं पर कहानी की कमजोरी की वजह से टूकड़ों-टूकड़ों में हंसाती फिल्म औसत होकर रह गयी है.
कहानी जमघेटी गांव में रहने वाले रिटायर्ड अफसर जगावर चौधरी (सन्नी देओल), हिंदी विषय के स्कूल मास्टर विनय शर्मा (बॉबी देओल) और क्रेडिट कार्ड कंपनी की वसूली करने वाले अर्जून सिंह (श्रेयस तलपड़े) की है. कहानी में मजेदार मोड़ तब आता है जब सरकार के नसबंदी वाले अभियान के पोस्टर में गलती से इन तीनों की तस्वीर छप जाती है. पोस्टर पर तस्वीर छपने की वजह से तीनों गांव वालों के लिए हंसी का पात्र बन जाते हैं. गांव वालों की नजर में तीनों मर्दाना कमजोरियों के शिकार बन जाते हैं. सोशल लाइफ के साथ-साथ तीनों की पर्सनल लाइफ में भी उथल-पुथल मच जाता है. इस घटना के बाद जहां जगावर की वाइफ उसे छोड़ कर चली जाती है, वहीं विनय की तय शादी टूट जाती है. इन घटनाओं से तंग आकर तीनों इस बात की तफ्तीश में जूट जाते हैं कि आखिर उनकी तस्वीर पोस्टर पर किसकी गलती से आयी और साथ ही सरकार के खिलाफ केस करने की ठान लेते हैं. इस कोशिश में प्रशासन, समाज के साथ-साथ कई सरकारी विसंगतियों का भी खुलासा होता है.
फिल्म क ी कमजोर कहानी के बावजूद संवादों का चुटीलापन, कई सारे वन लाइनर्स और कई घटनाक्रम हैं जो आपको रह-रहकर हंसाते हैं. फिल्म के एक किरदार बलवंत को बार-बार पीछे से किसी का बलवंत राय के कुत्ते कहकर पुकारने का दृश्य हो या बॉबी देओल के किरदार के मोबाइल रिंग टोन में बार-बार सोल्जर-सोल्जर गाने का बजना जैसे कई दृश्य आपके चेहरे पर मुस्कान ला देंगे.
अभिनय की बात करें तो लंबे गैप के बाद परदे पर दिखे सन्नी एक्शन वाले अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर एक नये आयाम के साथ सामने आते हैं. इस अंदाज में वो खासे सफल भी रहे हैं, पर उम्र अब उनकी शारीरिक बनावट पर हावी होती दिखने लगी है. बॉबी देओल और श्रेयस तलपड़े तो पहले भी क ॉमिक अंदाज में नजर आ चुके हैं. गाने और बैकग्राउंड स्कोर औसत ही हैं जो प्रभाव छोड़ पाने में असफल रहे हैं. कुल मिलाकर कहें तो अगर आप फ्री हैं और सन्नी-बॉबी के फैन हैं तो कमजोर कहानी के बावजूद नये विषय को क ॉमिक अंदाज में परोसती पोस्टर ब्वॉयज के लिए एक बार थियेटर का रूख कर सकते हैं. वरना कुछ महीनों बाद टीवी पर आने का इंतजार भी बूरा नहीं रहेगा.


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