Sunday, October 29, 2017

फिल्म समीक्षा

बरेली की बरफी: नहीं खाएंगे तो पछताएंगे

शहरी भागदौड़ में भूल चुके छोटे-छोटे खुशियों के पल फिर से इंज्वाय करना चाहते हों तो बरेली की बरफी आपके लिए है. कहानी खास भले न हो पर कहानी कहने का अंदाज और परिवेश के लिहाज से चुटीले संवाद आपको थियेटर में उछलने पर मजबूर कर देंगे. नील बटे सन्नाटा से अपनी अच्छी फिल्म का रसास्वादन कराने वाली निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी ने बरेली की बरफी के जरिये उस स्वाद को दोगुना मीठा बना दिया है. यूपी की बरेली के छोटे जगह पर आधारित कहानी में आंचलिकता के वो सारे पूट हैं जो किसी कहानी को मुकम्मल सिनेमा बनाने के लिए जरूरी होते हैं. और साथ में पंकज त्रिपाठी, सीमा पाहवा, आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव और कृति सेनन की दमदार अदाकारी इस बरफी पर चांदी के वर्क का काम करती है. इस कहानी में आपको छोटे शहर का वो लड़का दिखेगा जो प्यार पाने के लिए सही-गलत सारे हथकंडे अपनाता है. जुगत भिड़ाता है और जो दिल टूट जाने पर फूट-फूट कर रोता-चिल्लाता है. ऐसी लड़की दिखेगी जो जिसमें वो सारे लक्षण हैं जो सामाजिक ढांचों में उसे शादी के लिए अयोग्य करार देते हैं. पर खुद में मस्त वो लड़की इन सबसे बेफिक्र पिता के साथ सिगरेट पीती है, रात में बाहर घूमती है, शराब पीती है और इन सबके बावजूद खुद पर फक्र करती है. एक ऐसा बाप दिखेगा जिसे अपनी बेटी की इस आजादख्याली पर नाज है, एक ऐसी मां दिखेगी जिसे हर कुंवारे लड़के में अपना होने वाला दामाद दिखता है. और ये सारे किरदार आपको अपने आस-पास की जिंदगी से जुड़े लगेंगे.
कहानी बरेली के मिश्रा फैमिली (पंकज त्रिपाठी- सीमा पाहवा) के इर्द गिर्द घूमती है. बेटी बिट्टी मिश्रा (कृति सेनन) मस्त ख्यालात की लड़की है. उसे लड़के और लड़कियों के बीच समाज के बनाये फर्क से नफरत है. अपनी शादी की चिंता में मां को घुलता देख बिट्टी एक दिन घर छोड़ने का फैसला ले लेती है. पर स्टेशन पर उसके हाथ बरेली की बरफी नाम की ऐसी किताब लगती है जिससे उसे लगता है ये बिलकुल उसी की कहानी है. और कोई है जो उसे बेहद करीब से जानता है. वो वापस घर लौट आती है और किताब के लेखक प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव) की तलाश करने लगती है. इस कोशिश में वो प्रिटिंग प्रेस के मालिक चिराग दुबे (आयुष्मान खुराना) की मदद लेती है. पर कहानी में एक अन्य ट्विस्ट भी है. प्रेम में हारे चिराग ने प्रेमिका के गम में खुद ही बरेली की बरफी लिखी थी. पर प्रेमिका की बदनामी के डर से किताब प्रीतम विद्रोही के नाम से प्रकाशित करवा दी थी. अब उसके सामने दुविधा ये है कि बिट्टी को कैसे बताए कि वो ही किताब का राइटर है.
कहानी काफी प्रेडिक्टेबल होने के बावजूद पूरे समय रफ्तार में रहती है. फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसके कलाकारों का अभिनय है. पंकज त्रिपाठी और सीमा पाहवा की केमिस्ट्री फिल्म की जान है. पंकज त्रिपाठी तो फिल्म दर फिल्म अभिनय के नये आयाम गढ़ते जा रहे हैं. यूपी के ठेठ लहजे में आयुष्मान खुराना और कृति सेनन भी उम्दा लगे हैं. पर कोई अभिनेता अगर पूरी फिल्म में सबसे आश्चर्यचकित करता है तो वो है राजकुमार राव. हर फ्रेम में एक अलग भाव साथ आते राजकुमार का अभिनय भाता है. श्रेयस जैन के साथ मिलकर दंगल फिल्म के निर्देशक नितेश तिवारी की लिखी संवाद-पटकथा भी फिल्म को देखने लायक बनाती है. गीत-संगीत की बात करें तो स्वीटी तेरा ड्रामा और ट्विस्ट कमरिया पहले से ही चार्ट बस्टर पर हैं.
क्यों देखें- आंचलिकता के चाशनी में डूबी छोटे शहरों की प्रेमकथा का रस लेना हो तो एक बार जरूर देखें.
क्यों न देखें- अलग हटके किसी उम्दा कहानी की उम्मीद निराश करेगी.


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