Sunday, October 29, 2017

फिल्म समीक्षा

पटकथा की कमजोरी का शिकार हुई फिल्म

निर्देशक कुशान नंदी की फिल्म बाबूमोशाय बंदूकबाज पिछले कुछ महीनों से अपने ट्रेलर की वजह से खासी चर्चा बटोर रही थी. फिल्म उस वक्त भी लाइमलाइट में आ गयी जब सेंसर बोर्ड ने इसमें अड़तालीस कट्स लगाने का निर्देश जारी किया था. पर ये सारी क्यूरिसिटी थियेटर के अंदर फिल्म के कमजोर पटकथा की भेंट चढ़ गयी. नवाजुद्दीन सिद्दीकी और बिदिता बाग जैसे उम्दा कलाकारों की अदाकारी भी फिल्म को औसत से आगे नहीं ले जा पाती. फिल्म कई जगहों पर आपको अनुराग कश्यप स्टाइल के सिनेमा की फ ीलिंग भी देती है. 
कहानी कांन्ट्रेक्ट किलर बाबू (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की है जो दस साल की उम्र से ही मर्डर करता आ रहा है. पैसों के लिए वो पोलिटिकल किलिंग से भी परहेज नहीं करता. ऐसे ही एक क ांट्रेक्ट के दौरान उसकी मुलाकात फुलवा (बिदिता बाग) से होती है और बाबू उसे दिल दे बैठता है. कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब क ांट्रेक्ट किलिंग के इस धंधे में इंट्री होती है बांके (जतिन गोस्वामी) की. बांके बचपन से बाबू का फैन रहा है और उसे ही गुरू मानकर इस धंधे में उतरा है. कुछ दिन तक सब ठीक चलता है पर एक दिन दोनों को एक ही आदमी को मारने का क ान्ट्रेक्ट मिल जाता है. दोनों के बीच ठन जाती है. दोनों शर्त लगाते हैं जो भी उसके ज्यादा आदमी को मारेगा वही सबसे बड़ा किलर होगा. इस खेल में बाबू को आगे बढ़ता देख बांके आखिर में उसे ही गोली मार देता है और खुद शहर को सबसे बड़ा सुपारी किलर बन बैठता है. पर कहानी में एक और दिलचस्प मोड़ तब आता है जब कुछ सालों बाद बाबू फिर जिंदा लौट आता है. अपना प्यार और दौलत सबकुछ खो चुका बाबू बदले की राह पर चल पड़ता है. पर इस राह में उसका सामना कुछ ऐसी सच्चइयों से होता है कि वो खुद अचंभित रह जाता है.
प्यार और बदले की इस घिसी-पिटी कहानी के बीच अगर कुछ अच्छा है तो वो है बाबू के किरदार में नवाजुद्दीन को देखना. किरदार की बारिकियां पकड़ उसे अलहदा तरीके से उकेरने में नवाज का कोई सानी नहीं. फुलवा के किरदार में बिदिता की क ाबिलियत भी हिंदी सिनेमा में बेहतर भविष्य का इशारा करती है. सह कलाकारों में जतिन गोस्वामी, दिव्या दत्ता और मुरली शर्मा भी सराहनीय हैं. हां फिल्म में कुछ और बात जो ज्यादा खलती है तो वो है हिंसा और क ामूक दृश्यों का अतिरेक. फिल्म इनके बगैर भी पूरे प्रभाव से अपनी बात कह सकती थी. 
क्यों देखें- नवाजुद्दीन सिद्दीकी की बेहतरीन अदाकारी की एक और बानगी देखनी हो तो देख सकते हैं.
क्यों न देखें- बेहतर कहानी से सजी फिल्म देखने की चाहत हो तो थियेटर से दूर ही रहना बेहतर है.

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