Sunday, October 29, 2017

स्टार इमेज के भंवर में फांसकर ठगे जा रहे दर्शक


पिछले दिनों थियेटर में सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट रिलीज हुई. कमजोर पटकथा और इंटरटेनमेंट वैल्यू के अभाव में फिल्म को क्रिटिक के द्वारा काफी आलोचना का सामना करना पड़ा. जिसका असर बॉक्स ऑफिस पर भी साफ दिखायी पड़ा और तीन दिनों के कलेक्शन के आधार पर ट्यूबलाइट सलमान की पिछले सात सालों में सबसे कमजोर फिल्म साबित हुई. इस फिल्म के हश्र ने यह चर्चा भी तेज कर दी है कि आखिर कबतक दर्शक इन स्टार्स की इमेज के भरोसे अपनी जेबें ढीली करते रहेंगे. दूसरी ओर क्रिटिक द्वारा नकारी इन समीक्षाओं से इतर सलमान के चेहरे पर इस बात को ले शिकन तक नहीं आयी. जिसका प्रमाण उन्होंने अपने हालिया इंटरव्यू में दिया कि क्रिटिक से उन्हें निगेटिव मार्किग की भी उम्मीद नहीं थी और उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. कमोबेश यही हाल आजकल हर दूसरे-तीसरे स्टार का है. पिछले कुछ सालों में इन बड़े स्टार्स की फिल्मों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि ये स्टार अब कंटेंट के बजाय अपने स्टार इमेज से दर्शकों को साधने में लगे हैं. फिर बात चाहे पिछले दिनों आयी शाहरूख के फिल्म दिलवाले, रईस की हो या सलमान के जय हो, रेडी, प्रेम रतन धन पायो या फिर ट्यूबलाइट की. इन सबने अपनी छवि के हिसाब से अपनी फिल्म रिलीज के लिए कई त्योहार भी अपने नाम से बूक करा रखे हैं. सलमान अपनी छवि को ईद के मौके पर तो शाहरुख दीवाली के मौके पर भुनाते नजर आते हैं. स्टार की इन इमेज के बुते ठगते दर्शकों पर बात करते हुए फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम कहते हैं बात आज की नहीं है. हिंदी सिनेमा में स्टार सिस्टम हमेशा से हावी रहा है. पर मल्टीप्लेक्स कल्चर के बाद इन स्टार्स के हाथ अलादीन का चिराग लग गया है. अब इनकी नजर इनिशियल कलेक्शंस पर ही टिकी रहती है. दूसरी ओर अन्य जरियों मसलन म्यूजिक राइट्स, सेटेलाइट राइट्स आदि से होने वाली कमायी की वजह से भी इनकी जेबें भर जाती हैं. जिससे कंटेंट से इनका सरोकार टूटता जा रहा है. स्टार पावर का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज बाहुबली जैसी फिल्म के स्टार को फिल्म के लिए महज पंद्रह करोड़ मिलते हैं वहीं सलमान-शाहरुख जैसे स्टार्स को कम से कम एक फिल्म के सौ करोड़ (जिनमें कई राइट्स भी शामिल हैं). इसका परिणाम यह हो रहा है कि फिल्मों से पटकथा, तकनीक और मेकिंग जैसी चीजें गौण होती जा रही हैं. सलमान की ही बात करें तो पिछली कुछ फिल्मों में उन्होंने अपनी छवि रोने-धोने वाले मासूम व भोले शख्स की तैयार कर ली है. और अपने बढ़ते फैन फ ौलोइंग के जरिये जेब भरने की उनकी ऐसी कोशिश में दर्शक खुद को ठगा महसूस करने लगे हैं. जिसका परिणाम उनकी नयी फिल्म के गिरते कलेक्शन से साफ जाहिर होता है. पुरानी फिल्मों में अभिनेता के साथ-साथ कहानी और कैरेक्टर भी स्टार होते थे, पर आज की फिल्मों में याद रखे जाने लायक सीन तक नहीं होते. मुंबई के वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज की राय में स्टार 
स्टार्स के लिए सिनेमा अब केवल सोर्स ऑफ इनकम का जरिया-
ट्यूबलाइट देख कर निकल रहे कई दर्शकों की राय में सिनेमा अब इन स्टार्स के लिए केवल सोर्स ऑफ इनकम का जरिया रह गया है. पर ऐसे सिनेमा या स्टार लंबी रेस का घोड़ा नहीं हो सकते. अब दर्शकों के पास मनोरंजन के इतने विकल्प मौजूद हैं कि आप उन्हें केवल स्टार के नाम पर ज्यादा दिनों तक बेवकूफ नहीं बना सकते. आज सिनेमा को आर्ट प्रोडक्ट की तरह देखने वाले कलाकार और दर्शक भले कम हों पर पिछले कुछ सालों में बड़ी फिल्मों का बुरा हश्र और छोटी बजट की अच्छी कंटेंट वाली फिल्मों का पसंद किया जाना इस बात का इशारा है कि दर्शक अब सचेत हो गये हैं. 
पिछले छह सालों में ईद पर आयी सलमान की फिल्मों के कलेक्शन 
2011- बॉडीगार्ड- 88.75 करोड़ 
2012-एक था ट7ाइगर-100.16 करोड़
2014-किक-83.38 करोड़
2015-बजरंगी भाईजान-102.6 करोड़
2016-सुलतान-105 करोड़
2017-ट्यूबलाइट-64.77 करोड़
(आंकड़े पहले वीकेंड के)





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